Tuesday, December 2, 2008
The smiling face of god!
Friday, November 28, 2008
उजाले की कोख का अँधेरा
सुबह का अखबार हाथ में आते ही सन्न रह गया। खून-ही-खून, चारों ओर। ये हो क्या रहा है? अपने ही देश में दुम दबा कर भाग रहे हैं हम, और कुछ कुत्ते शेर की मानिंद शिकार करते घूम रहे हैं।
मैंने झट मटकू भइया को फ़ोन लगाया।
"भइया प्रणाम। ये सब क्या हो रहा है?"
"क्या कहें, ई ता एक दिन होना ही था...."
"काहे भइया?"
"कलयुग में ये क्या हो रहा, तमस प्रकाश पर भारी पर रहा
दैदीप्यमान आलो की कोख से, कैसा अन्धकार पैदा हो रहा।
झुलसाती-लपलपाती ज्वाला, प्यासी है खून की
तांडव है मौत का, सरफिरों के दर्प की।
टी वी कैमरों पर नज़र आने की मारामारी चल रही है,
ब्रेकिंग न्यूज़ से TRP ब्रेक करने की तैयारी चल रही है।
नेता बोले, उनके इरादे नेक नही थे,
होते भी कैसे, हम एक नही थे।
मराठियों का महाराष्ट्र, बिहार में बिहारी बसता है,
हिन्दुस्तान में हिन्दुस्तानी नही, यही दर्द डंसता है।
हिंद के प्रकाश "दिनकर", लौट कर फिर आ जाओ,
कृष्ण की बन कर तुम वाणी, गीता पुनःश्च दोहराओ।
"क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो,
उसको क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत, सरल हो।" "
Friday, November 7, 2008
Wings of life
"What are you upto?"
"I'm trying to catch a butterfly, but am not able to. But papa, can you tell me, why do we don't see lot of butterflies these days? Earlier, they were quite a lot and I managed to catch one of them easily!"
Suddenly I recalled that an article in newspaper said that the number of sparrows in cities have gone down by around 40%! The journey of sensex has become so important for us that we seem to be more reluctant towards issues that may affect our existence. We are breaking barriers, crossing our limits. When nature strikes back, we cry in woe.
Butterflies play an important role in cross-pollination. They maintain the bio-diversity in the plant kingdom. Sparrows play an important role in controlling the population of pests and insects.
But why have they gone? The high amount of pesticides, chemicals, fuel residues (from vehicles) and wave signals of DTH, FM and mobiles interrupt with their normal life. The high noise and pollution is also forcing them to shift from cities. But who cares....
Being delicate and sensitive towards change, they are reacting to it but when will we wake up? Are these factors NOT affecting our lives? The bell is ringing. It is upto us that we wake up or ignore it.
Wednesday, October 22, 2008
गांधीजी की याद में....
"कहाँ थे भइया? आपके बिना गांधी-जयंती यूँ ही बीत गई। आज कल तो गांधीजी को कोई याद नही करता। एक आप ही हैं जो ऐसी बातें समझ सकते हैं... वरना..."
मेरी बात बीच में ही काट कर भइया बोले "गांधीजी को लोग आज भी उतना ही मानते हैं। मेरी कहानी सुनो... ड्राइविंग लाइसेंस में पता बदलवाना था... डीटीओ ऑफिस के चक्कर लगा-लगा कर थक गया। वहां का बाबु बोला कि गवाह लेकर आओ। हम उसको बोले कि अभी तो हम नया-नया वहां गए हैं, गवाह कहाँ से लायें? तो जानते हो कि क्या बोला?... बोला कि अगर गांधीजी गवाही दें तो....."
"गांधीजी की गवाही?"
"अरे हम भी अइसने बुरबक वाला सवाल कर दिए... उ ऊपर नीचे हमको देखा और बोला कि १००० रु निकालो, तब काम होगा!"
"अच्छा-अच्छा" मैं अपनी मूर्खता पर हँसने लगा। मुझे ये पहले ही समझ जाना चाहिए था।
"वैसे तुमको एक बात बताएं।" भइया शुरू हो गए। "अगर गांधीजी के अहिंसा का पालन होता तो आज दुनिया कुछ और होती। जानते हो कि अमरीका का रक्षा बजट बहुत से देशों के जीडीपी से ज़्यादा है। हम बम-बारूद पर जितना खर्च करते हैं, उतने में हम पृथ्वी से बीमारियों का नामोनिशान मिटा सकते थे, हर मुहं को रोटी दे सकते थे, हर हाथ को काम दे सकते थे।"
"एक और बात कहें... गांधीजी जिस ग्राम-स्वराज की कल्पना किए थे, उस पर चल कर न सिर्फ़ हम सबको रोज़गार दे सकते हैं बल्कि आर्थिक मंदी की आंधी से भी बच सकते हैं। अब भासन बहुत हो गया। गांधीजी से गवाही दिलवाने के बाद मेरा मूड थोड़ा ख़राब है। बाद में मिलते हैं।"
Friday, October 10, 2008
लौहनगरी में दुर्गापूजा
Wednesday, September 17, 2008
जगत-शिल्पी को शत-शत नमन!
Friday, August 29, 2008
दद्दू तुम!
"ऐ सर्किट, दद्दा बोले तो?"
"क्या भाई, दद्दा को नही जानता?"
"अबे सर्किट, PSPO का ad मत कर। मेरा भेजा फ्राई मत कर, वरना गांधीगिरी भूल के टपका डालूँगा।"
"सॉरी भाई, मिस्टेक बिकेम रोंग! भाई, हॉकी के एक महान खिलाड़ी थे - मेजर ध्यानचंद। उन्ही को भाई लोग दद्दा बुलाते थे।"
"ऐ सर्किट, ये भाई लोग हॉकी भी खेलते थे क्या?"
"क्या भाई... आप भी! भाई लोग बोले तो उनके चाहने वाले। एक बात मालूम भाई, उस टाइम पे दुनिया का एक भाई था... भाई बोले तो अपुन के जैसा दुनिया पे राज करने का सपना देखता था - हिटलर। बर्लिन ओलंपिक में जब बाल दद्दा के हॉकी स्टिक से हटती नही थी तो उसने स्टिक बदलवा दिया। "हॉकी के जादूगर" का जादू हिटलर पर भी चला भाई! वो तो अपने दद्दा को अपनी आर्मी का जनरल बनाना चाहता था लेकिन दद्दा ही नही गए।"
"लेकिन आज तेरे को ध्यानचंद कि याद क्यों आई?"
"क्योंकि आज उनका जन्मदिन है।"
"ऐ सर्किट, अपुन हॉकी तो नही खेल सकते लेकिन हॉकी के इस जादूगर की याद में दो मिनट कि श्रधांजलि तो दे ही सकते हैं।"
Sunday, August 10, 2008
उद्यम-सार
"भइया प्रणाम"
"आनंदित रहो! कहाँ था? दिख नही रहा था?"
"था तो यहीं, लेकिन इधर काम का कुछ बोझ बढ़ गया था। इसलिए देर तक काम करना पड़ रहा था। आप सुनाइए... आजकल नीतीश के सुशासन के बड़े चर्चे चल रहे हैं। अखबारों में देखा कि नरेगा की सफलता ने पंजाब में बिहारी मजदूरों की किल्लत कर दी है । "
"अब जब तुम बात निकालिए दिए हो तो तुमको एक छोटा सा कहानी सुनाते है। एक पंजाबी और एक बिहारी को एक ढाबे में रोटी बनाने की नौकरी मिली। दोनों नया था... कभी रोटी तऽ बनाया नही था। खैर... जैसे तैसे दोनों सीखने लगा। जिस दिन बिहारी का रोटी गोल बना वो कोशिश करने लगा कि रोटी कैसे बढ़िया फूले। जब रोटी फूलने लगा तऽ दिन रात यही कोशिश में लगा रहता था की रोटी और ज्यादा गोल कैसे हो... और ज्यादा कैसे फूले।"
"और पंजाबी का क्या हुआ भइया?" मैंने पुछा।
"जिस दिन पंजाबी का रोटी गोल होकर फूल गया, वो बगल में दूसरा ढाबा खोल लिया! कुछ समझा?"
मैं समझने की कोशिश करता रहा.....
Saturday, July 19, 2008
टी वी मुझे देखता है
पिंजरे से छूटे पंछी सा, पहुँचा फिर मैं घर
पहुँचा फिर मैं घर, हाल क्या बोलूं भाई
पत्नी झट से चाय-नाश्ता लेकर आयी
गर्म चाय की घूँट से, जब गला हो गया तर
मैं टी वी के सामने बैठा, देखूं ज़रा ख़बर
देखूं ज़रा ख़बर, हाल जानूं दुनिया का
पहली ख़बर "कत्ल हो गया किसी लड़की का"
भाई ने "भाई" से भाई को मरवाया
सेंसेक्स का ग्राफ लुढ़क कर नीचे आया
लुढ़क कर नीचे आया लोगों का चरित्र भी
सदन में करते मार-पीट, एम एल ए - एम पी
आम आदमी त्रस्त महंगाई की मार से
चीन ढहा भूकंप से, गंगा बढ़ी बाढ़ से
गंगा बढ़ी बाढ़ से, सबका रोना देखा
रोज़ की बात है, इसमे क्या है नया-अनोखा?
गुर्रा कर टी वी ने जैसे मुझको देखा
ये सच था या था मेरी नज़रों का धोखा?
"नज़रों का धोखा?" मुझको फटकार लगाई
तू कैसा निर्लज्ज, नाकारा मानुष है भाई
लोगों को रोते देखूं तो, आंसू मुझको आते हैं
मानवता के सोते तुझमे, सूख कैसे सब जाते हैं
सूख कैसे सब जाते हैं, क्या मरा हुआ है?
कर्मवीर का ये जीवन है, नही जुआ है
हाथों में रिमोट जो लूँ, मेरा मन सोचता है
मैं टी वी नही, टी वी मुझे देखता है।
Wednesday, July 16, 2008
जीवन तेरे रूप अनेक
Wednesday, July 9, 2008
जमशेदपुर की बाढ़
ये तस्वीर है स्वर्णरेखा नदी की। मुख्य भूमि को मानगो से जोड़ती इस पुल को पानी ने लगभग छु लिया। पुल पर खड़े लोग बाढ़ का नज़ारा लेते हुए...
ये तस्वीर है खरकई नदी पर बने आदित्यपुर पुल की।
गरीब तो गरीब, कई पॉश कालोनियां भी बाढ़ की चपेट में आने से नही बच सकीं।
राहत और बचाव के दौरान आदित्यपुर में एक दुर्घटना हो गई। तकरीबन दो दिनों तक रहे इस बाढ़ ने बता दिया की मनुष्य प्रकृति के सामने कुछ भी नही।
Sunday, June 29, 2008
दोनों हाथ उलीचिये ......
"भइया प्रणाम। आईए ना..." मैंने आग्रह किया।
"क्या बात है... काफी परेशान दिख रहे हो?"
"हाँ भइया.... इन्फ्लेशन ११% के पार चला गया। घर के लिए क़र्ज़ लिया था। वो अब भारी पड़ने लगा है। रिज़र्व बैंक की हाल की घोषणा के बाद तो लगता है कि ये और भी भारी हो जाएगा।"
"फिर क्या सोचा? कुछ पैसवा बचा है तो क़र्ज़ चुका दो।"
"हाँ भइया। सोचा तो है। फिर सोचता हूँ कि बैंक ज़मा पैसा पर भी तो ज्यादा ब्याज देगा! इसी उधेर-बुन में हूँ कि लोन चुका दूँ या पैसा फिक्स कर दूँ! आप क्या सलाह देते हैं?" मैंने उनके विचार जानने चाहे। हमेशा मुफ्त की सलाह देने वाले मटकू भइया पहले तो सोच में पड़े... फिर दार्शनिक अंदाज़ में बोले...
"देख बबुआ, हम ता ठहरे पुरान (पुरानी) बुद्धी वाले। फिर भी हम ऐ गो पुरान बात दोहरा देते हैं ...
ज्यों जल बाढै नाव में, घर में बाढै दाम।
दोनों हाथ उलीचिये, यही सयानो काम।।
कम कहे पर ज्यादा समझना! अब चलता हूँ।" मटकू भइया तो चल दिए पर उनकी बातें अभी तक मेरे दिलो-दिमाग में गूँज रही हैं।
Saturday, June 7, 2008
शौर्य
अब तक था अप्राप्य, अछूता
उस मंजिल की ओर बढें
आओ हम सब मिलकर
शौर्य की नई परिभाषा गढ़ें
धरती के सीने को चीरता
जैसे हो बलराम का हल
जीवन-स्त्रोत से ओत-प्रोत
है किसान का आत्मबल
रह जाए न कोई भूखा
कृषक की ये साध सधे
आओ हम सब मिलकर
शौर्य की नई परिभाषा गढ़ें
चीर कर अम्बर का सीना
ऊपर बढ़ता भवन विशाल
हाड़-तोड़ मेहनत हैं करते
मजदूरों का शौर्य कमाल
धरती के साए से उठकर
स्वर्ग की सीढ़ी चढें
आओ हम सब मिलकर
शौर्य की नई परिभाषा गढ़ें
आते-जाते हमने देखा
रेल-सड़क का फैला जाल
धमनी में ज्यूँ रक्त है बहता
ड्राईवर सदा ही चलता रहता
पलक न झपके मंजिल तक,
उसके हैं हर कदम सधे
आओ हम सब मिलकर
शौर्य की नई परिभाषा गढ़ें
Monday, June 2, 2008
जय जवान, जय किसान
"भइया प्रणाम, कैसे हैं?"
"क्या रहेंगे बबुआ, ई कमर तोड़ महंगाई में नौकरी वाला भी ससुरा बी पी एल हो गया है। सोचो कि गरीबों का क्या होगा?"
"बी पी एल क्या?" मैं ज़रा अनजान बन गया। भइया को मेरी नादानी पर गुस्सा करने का मौका मिला, "ऐतनो नही बुझाता है क्या रे तुमको? बी पी एल माने गरीबी रेखा के नीचे वाला लोग, हिन्दी में कहेंगे लाल कार्डधारी। अब त समझिए गया होगा।"
" जी - जी"
"कहाँ जा रहा है?"
" जी, ज़रा सोचा कि कुछ सब्जियां ले लूँ। "
" थैला भर के पैसा लाया है न? पहले पॉकेट में पैसा लाते थे और थैला में सब्जी ले जाते थे। अब त ज़माना ही उल्टा हो गया है!"
"आप कहते हैं की चावल-दाल-सब्जी का भाव बढ़ गया है। फिर किसान क्यों खुदकुशी कर रहे हैं ?" मैंने मटकू भइया को छेड़ा।
"तुम लोग को बुझायेगा... अरे तुमको का लगता है... सेंसेक्स ऊपर चढ़ गया त किसानों के जिंदगी का ग्राफ ऊपर चला गया? फसल ज्यादा हो या कम, किसान दोनों तरफ़ से मरता है। कम हुआ तो क़र्ज़ चुकाने लायक भी पैसा नही आता है... ज्यादा हुआ तो फसल का दाम कम मिलता है। अब त किसानों सब चालाक हो गया है। अनाज-सब्जी छोड़ के सूरजमुखी, एलो-वेरा और गेंदा लगाने लगा है। आख़िर पैसा किसको अच्छा नही लगता है?"
"अच्छा भइया, जय जवान-जय किसान... ... ..."
"अरे तुम क्या बोलेगा," मेरी मुहं की बात मुहं में ही रह गयी। "जवान भी अब नौकरी से तौबा कर रहा है। पैसा तो पहले भी ज्यादा नही था लेकिन इज्ज़त खूब था। अब त उसी का इज्ज़त है जिसके पास पैसा है। तभी तो तेज़ विद्यार्थी फौज के बदले ऑफिस का काम पसंद करता है। आराम का आराम... और पैसा भी दुनिया भर का।"
"आपकी बात में तो दम है" मैंने कहा।
".... तुम्हारे चक्कर में मेरा भी काम गड़बड़ हो जाएगा। तुम जाओ सब्जी-मंडी... मैं चला अपने रस्ते..."
Wednesday, May 21, 2008
पीने योग्य जल: क्या कहता है भारतीय मानक ब्यूरो
Essential characteristics | ||
Substance/Characteristic Requirement | Permissible Limit | (Desirable Limit)in absence of Alternate source |
Colour, ( Hazen units, Max ) | 5 | 25 |
Odour | Unobjectonable | Unobjectionable |
Taste | Agreeable | Agreeable |
Turbidity ( NTU, Max) | 5 | 10 |
pH Value | 6.5 to 8.5 | No Relaxsation |
Total Hardness (as CaCo3) mg/lit.,Max | 300 | 600 |
Iron (as Fe) mg/lit,Max | 0.3 | 1 |
Chlorides (as Cl) mg/lit,Max. | 250 | 1000 |
Residual,free chlorine,mg/lit,Min | 0.2 | -- |
Desirable Characteristics | ||
Dissolved solids mg/lit,Max | 500 | 2000 |
Calcium (as Ca) mg/lit,Max | 75 | 200 |
Copper (as Cu) mg/lit,Max | 0.05 | 1.5 |
Manganese (as Mn)mg/lit,Max | 0.1 | 0.3 |
Sulfate (as SO4) mg/lit,Max | 200 | 400 |
Nitrate (as NO3) mg/lit,Max | 45 | 100 |
Fluoride (as F) mg/lit,Max | 1.9 | 1.5 |
Phenolic Compounds (as C 6 H5OH)mg/lit, Max. | 0.001 | 0.002 |
Mercury (as Hg)mg/lit,Max | 0.001 | No relaxation |
Cadmiun (as Cd)mg/lit,Max | 0.01 | No relaxation |
Selenium (as Se)mg/lit,Max | 0.01 | No relaxation |
Arsenic (as As) mg/lit,Max | 0.05 | No relaxation |
Cyanide (as CN) mg/lit,Max | 0.05 | No relaxation |
Lead (as Pb) mg/lit,Max | 0.05 | No relaxation |
Zinc (as Zn) mg/lit,Max | 5 | 15 |
Anionic detergents (as MBAS) mg/lit,Max | 0.2 | 1 |
Chromium (as Cr6+) mg/lit,Max | 0.05 | No relaxation |
Polynuclear aromatic hydro carbons(as PAH) g/lit,Max | -- | -- |
Mineral Oil mg/lit,Max | 0.01 | 0.03 |
Pesticides mg/l, Max | Absent | 0.001 |
Radioactive Materials | ||
i. Alpha emitters Bq/l,Max | -- | 0.1 |
ii. Beta emitters pci/l,Max | -- | 1 |
Alkalinity mg/lit.Max | 200 | 600 |
Aluminium (as Al) mg/l,Max | 0.03 | 0.2 |
Boron mg/lit,Max | 1 | 5 |
Sunday, May 18, 2008
आशा
भटकता मन अंतस
गिरते-उठते ज्वार सा
आवेग करते अतिक्रमण
अपनी ही परछाई से
डर सा लगने लगे
डरो मत, उठो
आशा के दीप
छोटे ही सही
लौ थरथराती ही सही
अकेले लडेंगे अंधेरों से
डरेगा, अंधेरा भी
दीप की नन्ही लौ से
भाग्य को कोसने की बजाये
कुछ कर दिखाएँ
एक छोटा सा दीप जलायें।
इस कविता ने स्वतः-स्फूर्त आज जन्म लिया।
Tuesday, April 29, 2008
जल शुद्धिकरण
जल की सफ़ाई करने का सबसे सरल उपाय है - उसको छान लेना। गाँव-देहातों में लोग पुरानी साफ धोती का इस्तेमाल जल को छानने में करते हैं। यह सबसे आसान और सस्ता तरीका है। इस तरीके से जल के बड़े कण और जीव-वनस्पति निकल जाते हैं। किंतु यह उपाय जल में मौजूद सूक्ष्म जीवों और गंध का सफाया नही करता।
दूसरा रास्ता है पानी को उबाल लेना। यह काफी हद तक कारगर तो है किंतु इसमे उर्जा व्यय होती है। उबालने के समय को लेकर काफ़ी भ्रम है किंतु काफी सारे सूक्ष्म जीव सिर्फ़ १०० डिग्री का तापमान आते-आते ख़त्म हो जाते हैं। ज्यादा उबालना उर्जा की बर्बादी के साथ-साथ भारी कणों की सघनता बढ़ा देता है।
तीसरा रास्ता है रसायनों का प्रयोग। आम तौर पर क्लोरीन और आयोडीन का इस्तेमाल होता है। इनकी कार्य-कुशलता इनकी सांद्रता और प्रतिक्रिया के लिए उपलब्ध समय पर निर्भर करता है।
व्यवसायिक तौर पर शुद्ध जल के लिए activated carbon bed जैसी तकनीकों का इस्तेमाल होता है। ये शोध का विषय हो सकता है, किंतु इस पोस्ट को मैं और लंबा नही करना चाहता। कभी समय मिला तो rain water harvesting जैसी तकनीक पर चर्चा ज़रूर करूंगा।
Thursday, April 10, 2008
जल - प्रदूषण
1. जल में आंखों से दीखने वाले कण और जीव-वनस्पति नही हों।
2. हानि पहुँचानेवाले सुक्ष्म जीव या कण न हों।
3. जल का pH संतुलित हो।
4. जल में पर्याप्त मात्र में oxygen घुला हो।
जब प्रदूषण की बात करें तो उपरोक्त चारों गुण यदि ना हों तो कहेंगे कि जल उपयोग के लायक नही है। प्रथम बिन्दु की बात करें तो पाएंगे कि आंखों से दीखने वाले कण और वनस्पति कुछ तो सीधे तौर पर हमारे द्वारा फेंके गए ठोस कचरे का परिणाम है और कुछ प्राकृतिक कारणों से हैं। प्राकृतिक कारणों में भूमि-क्षरण, प्राकृतिक परिवेश के पौधे इत्यादी हैं। जहाँ पर भोजन होगा, खाने वाले तो वहाँ पहुंचेंगे ही। फिर चाहे वो सूक्ष्म जीव ही क्यों न हों। रही बात जल के pH और oxygen की तो यह सब इंसानी कारनामे हैं। हमारे कल-कारखानों से निकलता औद्योगिक कचरा नदियों और भूमिगत जल-स्त्रोतों को खतरनाक रसायनों के मिलावट से प्रदूषित कर रहा है।
भूमिगत जल-स्त्रोतों का अत्यधिक दोहन होने से उसमे अनेक तत्वों की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुँच गयी है। इसको हम ppm में मापते हैं जिसका अर्थ होता है पार्ट प्रति मिलियन। ओक्सेजन को BOD and COD में मापते हैं।
BOD यानि Biological oxygen demand और COD यानि chemical oxygen demand. pH जल की acidity या alkaline nature को बताता है। साधारण जल का pH 7 होता है। इससे ज्यादा हुआ तो alkaline और कम हुआ तो acidic होता है।
जल में विभिन्न प्रकार के कण की उपस्थिति जल को Hard बनाती है। नाम के मुताबिक ही ऐसे जल से कोई काम कर पाना हार्ड होता है। जल से तमाम चीजों को बाहर कर उसे उपयोग के लायक बनाया जाता है। इसे Water treatment कहते हैं।
अगले पोस्ट में Water treatment की चर्चा करूंगा।
Friday, April 4, 2008
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून
प्रकृति ने हमें अनेक नेमतों से नवाजा है। स्वच्छ वायु और शीतल जल उनमे से हैं। आज के पोस्ट में मैं सिर्फ़ जल की बात करूंगा।
यूं तो पृथ्वी का दो-तिहाई हिस्सा जल से ढंका है, किंतु इंसानों के प्रयोग लायक जल बहुत ही कम है। जल का मुख्य भण्डार हमारे सागर-महासागर हैं। फिर है दोनों ध्रुवों और पर्वतों पर बर्फ के रूप में जमा हुआ पानी। तीसरा है हमारे भूमिगत जल स्त्रोत। जमीन की सतह पर बह रही नदियों और तालाबों में जमा पानी भी है किंतु इन्हे भी बर्फीले ग्लासिएरों या भूमिगत स्त्रोतों से ही पानी मिलता है। हमारे वातावरण में मौजूद जल-वाष्प भी जल का एक बड़ा भण्डार हैं।
पृथ्वी पर मौजूद जल का तकरीबन ९७% हिस्सा सागरों और महासागरों के खारे पानी के रूप में है। बाकी का करीब ३% हिस्सा ही हमारे काम का है। उसमें से भी, ६७ - ६८ % हिस्सा बर्फ के रूप में जमा हुआ है। करीब ३०% हिस्सा भूमिगत जल का है। नदियों, झीलों और तालाबों में १% से भी कम ताजा पानी है।
हम इंसान इतने कम उपलब्ध जल के स्त्रोतों का इस तरह से दोहन कर रहे हैं की जल्द ही हमारे सामने जल संकट अपने विकरालतम रूप में मौजूद होगा। हमारे उपयोग का लगभग सारा जल नदियों, झीलों या भूमिगत स्त्रोतों से आता है। हम न सिर्फ़ जल का उपयोग करते हैं, बल्कि उसे प्रदूषित भी करते हैं। इस तरह हम दोधारी तलवार से अपने जीवनदाता पर वार कर रहे हैं।
जल की उपयोगिता की चर्चा करना व्यर्थ है। यदि कहूं कि "जल ही जीवन है" तो अतिशयोक्ति नही होगी। किंतु कैसा जल जीवन है? हमारे कुछ उपयोग जीवन को सहारा देने वाले हैं जैसे की जल का भोजन और पीने के लिए उपयोग। फिर कुछ अन्य सहयोगी कार्य भी हैं जैसे नहाना, कपडे-बर्तन धोना और उद्योग धंधों में काम आने वाला पानी।
पानी पृथ्वी पर पायी जाने वाली एकमात्र ऐसी चीज़ है जो वस्तु के तीनो अवस्थाओं ठोस (बर्फ), तरल (जल) और गैस (जल-वाष्प) रूपों में एक साथ प्राकृतिक तौर पर मौजूद है। जो जल हमें मिलता है, उसमे कई तरह के कण और सुक्ष्म जीव होते हैं। उसमें कुछ हमें फायदा पहुंचाते हैं तो कुछ हमारा नुकसान भी करते हैं। आईये देखें कि जल में कौन-कौन से गुण होने चाहिए।
1. जल में आंखों से दीखने वाले कण और जीव-वनस्पति नही हों।
2. हानि पहुँचानेवाले सुक्ष्म जीव या कण न हों।
3. जल का pH संतुलित हो।
4. जल में पर्याप्त मात्र में oxygen घुला हो।
जब मैंने शुरू किया था, तब सोचा नही था कि इतना लिख देने के बाद भी इतना ज्यादा बचा रह जाएगा। अपने आने वाले पोस्ट में जल-शुध्धिकरण, प्रदूषण और जल-संग्रहण की चर्चा करूंगा।
Monday, March 17, 2008
Kishore once again
Thanks to tafreeh.com for this song.
Wednesday, March 12, 2008
Remebering the Founder
The picture above is the entrance to Jubilee Park. This Park was dedicated to the citizens of Jamshedpur when Tata Steel (Then it was Tata Iron & Steel Comapny pvt. ltd.), completed 50 years. This park was inaugurated by Pt. Jawahar Lal Nehru.
This image above shows the part of park where the founder's idol is setup.
This picture shows the trees lined up on the either sides of the three fountains. This park resembles the Vrindawan Gardens of Mysore.
This is the children's park. This park has lots of playing facilities for children, open all day long. It also has an inclined pathway meant for skaters!
Tuesday, March 11, 2008
Children: Butterflies in a cocoon
In the recent times, I have seen a drastic change in the attitude of society. Children are no more assets, they have become commodity! Be it any section of society, children are being deprived of their childhood.
Three news that moved me the most:
1. Some terrorist outfits have children (yes I said children... and what I saw on screen, I cant explain here.. thanks to the insensitive TRP hungry media) trainees.
2. A few children were released from the captive where they were being made to work.
3. Children are now getting more entries into films and TV (daily soaps and ADs).
No point in discussing the first issue. They can act beyond our wildest dreams! But the second point. What happened to those poor children after they were released in front of the media? And children working in films and TV.... what about them? If washing dishes and making punctures for earning the daily bread is "CHILD LABOR", under what category do you keep those little actors?
Let the children, be children। Let them flourish. Let them grow. Let them learn. Dont try to make them earning machines. Preserve the innocence...
बच्चों के छोटे हाथों को
चाँद-सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़ कर ये भी
हम जैसे हो जायेंगे
Wednesday, February 20, 2008
एक बकवास कथा
वक्त के साथ गौरैया के बच्चों ने उड़ना सीख लिया। इंसान ने भी ऊँगली पकड़ कर अपने बच्चे को चलना सिखा दिया। और वक्त गुजरा ... गौरैया ने एक दिन अपने बच्चे को घोंसले से बाहर कर दिया। बच्चा कुछ दिनों तक तो घूम - घाम कर वापस आ जाता था। फिर एक दिन वो जो गया तो वापस नही लौटा।
इंसान बड़े जतन से अपने बच्चे को पालता रहा। उसके मन में अपने बच्चे की वो ही "ऊँगली थाम कर चलने वाले" की छवि बनी रही। लेकिन बच्चा तो अब दौड़ने लगा था। उसे पिता की ऊँगली अब अपने रफ़्तार में बाधक लगती। वो तो गौरैया के बच्चे की मानिंद उड़ना चाहता था।
बूढे पिता को पुत्र की तेज रफ़्तार से गुरेज होने लगा था तो बेटे को पिता की बातें "टोकना" लगने लगी थी। पर आख़िर सामंजस्य का ही नाम जीवन है। धीरे-धीरे दोनों को ही एक दूसरे की आदत हो गयी। पिता को शिकायत रहती की बेटा हमेशा दरवाजे की कुण्डी नही लगता, पुत्र का तर्क था "आपने कौन सा खजाना जमा किया है जो चोरी हो जाएगा?"।
इन सारी घटनाओं के दरम्यान जीवन अपनी रफ़्तार से बढ़ता रहा। गौरैया अब भी हर साल आती। पता नही यह उसकी कौन सी पीढ़ी थी। इंसान भी अब दादा बन चुका था। पतझर में सूखे पेड़ पर नई कोंपल की हरियाली से जो ताज़गी आती है, वो ही अब उसके चेहरे पर दीखती थी। काल-चक्र एक चक्कर पूरा कर चुका था। पुत्र अब पिता था ... अपने पिता की ही तरह। उसका पुत्र बिल्कुल उसकी तरह था। एक समय उसे इस बात का गर्व हुआ करता था। धीरे - धीरे उसकी रफ़्तार से उसे भी डर लगने लगा था।
आज पुत्र फिर देर से आया और चुपके से अपने कमरे में बंद हो गया। दरवाज़े की आवाज़ से उसकी नींद खुल चुकी थी। धीरे से उठ कर वो दरवाज़े के पास गया.... ये क्या। आज फिर दरवाजा खुला हुआ है। वो बुदबुदाने लगा। ये नई पीढ़ी .... जाने कब अपनी जिम्मेदारी समझेगी... उसने कुण्डी लगा दी। जब वो घूमा तो सामने अपने पिता की तस्वीर दिखी। उसकी आंखों के आगे वो दिन घूम गया ... वो देर से आया था ... और चुपके से बिस्तर में घुस गया था। उसके पिता ने इसी तरह बुदबुदाते हुआ कहा था "नालायक" और वो बुदबुदाया था "सठिया गए हैं"। उसकी आंखों में आंसू आ गए। बेटे के कमरे के सामने से गुजरते हुए उसने सुना "सठिया गए हैं" .... और वो रुक गया। आंसू पोंछा ..... और मुस्कुराने लगे।
Monday, February 18, 2008
सिंहो की नही टोलियाँ, साधू ना चले जमात!
हमारे दशरथ मांझी भी उन्ही में से एक थे। ऐसी ही हैं खुशबु। और ऐसे ही हैं राघव महतो।
अब आप जरूर पूछेंगे "दशरथ मांझी कौन?" "खुशबु कौन?" "राघव कौन?"
यह कुछ ऐसे लोग हैं जिन्होंने कभी व्यवस्था का रोना नही रोया। श्रीकृष्ण के प्रिय अर्जुन की तरह कर्मभूमि में जम गए। और जामे तो कुछ यों कि कहना पड़ा
कौन कहता है कि आसमां में सुराख नही हो सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों
दशरथ मांझी: गया जिले के, पहाड़ से ठन गयी। लगन ऐसी लगी कि पहाड़ को काट कर ३०० फीट का रास्ता बना दिया। वो भी अकेले, बिना किसी मदद के।
खुशबु: मुज्ज़फ्फरपुर के रामलीला गाछी की, छोटी सी उम्र में बड़ा कारनामा। जिस जगह मूलभूत सुविधाएं भी नही, सहेलियों साथ मिल अपने इलाके की घटनाओं और खबरों को संकलित कर बनाया "अप्पन समाचार " ।
राघव: वैशाली जिले के, ट्रान्जिस्टर रेडियो बनाते बनाते ट्रांस्मित्टर बनाया और शुरू हो गया: राघव का FM .
इन लोगों में एक बात एक थी. इन्हें व्यवस्था से शिकायत कम और अपने ऊपर भरोसा ज्यादा था. समाज की दिशा-दशा बदलने वाले इन पार्थ को पार्थसारथी की जरूरत है. जरूरत है ऐसे लोगों की जो प्रतिभाओं को पहचान दिला सकें, उनका पोषण कर सकें.
Friday, February 15, 2008
प्रेम ना हाट बिकाय
ये सब कुछ देख कर मुझे कबीर की याद आयी.... प्रेम ना खेतों ऊपजे, प्रेम ना हाट बिकाय।
अखबारों में अलग - अलग किस्म के एक्सपर्ट्स अपनी-अपनी रायशुमारी में व्यस्त दिखे। किसी ने कहा की लाल गुलाब फलां शास्त्र की नज़र में दुःख का कारण है, खासकर काँटों वाले गुलाब, इसलिए पीले गुलाब भेंट करने चाहिए! किसी ने कहा की यदि आप फलां ब्रांड की परफ्यूम या chocolate अपने साथी को भेंट नही करते तो यकीन जानिए कि आप प्यार के लायक ही नही।
कुछ वैज्ञानिक विचार धारा के बुद्धिजीवियों ने दिल, दिमाग और होर्मोनेस को प्यार के बुखार के लिए जिम्मेदार बताया। कुछ ने श्रृंगार रस में प्यार को खोजा, तो कुछ ने शिव और मदन की गाथा ही सुना डाली।
कुल मिला कर ये ही हुआ कि मेरी छोटी सी बुद्धि में बड़ी-बड़ी बातें नही आयी। आयी तो बस एक कथा कि याद आयी... एक हाथी था.... आगे तो आप समझ ही गए होंगे!
Wednesday, February 6, 2008
Life is a handful of sand!
Sometimes, I feel that life is a handful of sand, the more you clench on it, the faster it flows out.