Sunday, February 7, 2010

भक्त और भगवान

मैं कुछ दिनों से सोच में डूबा था काफी दिन हो गए, मटकू भईया से मुलाकात नही हुई थी. आज सोचा कि चल कर मिल ही आऊँ. घर से निकला ही था कि सामने से भईया आते दिखे. मैं प्रसन्न हो गया. यूँ लगा जैसे कुआँ खुद प्यासे के पास चला आ रहा हो.

"भईया प्रणाम" मैंने कहा.
"आनंद से रहो" भईया के श्री-मुख से आशीर्वाद पा कर अच्छा लगा.
"क्या बात हो गयी भईया?" मैंने उलाहना दिया. "दिसंबर गया, जनवरी गयी और आप मुझे अब मिल रहे हो?"
"अरे कोई ख़ास बात नही है. मैं एक महीने की ट्रेनिंग लेने मुंबई गया था."
"पर वहां के हालात तो बिगड़े हुए हैं. ठाकरे-द्वय ने तो जंग छेड़ रखी है. कभी बॉलीवुड को निशाना बनाते हैं तो कभी हिन्ढी-भाषियों को. अभी IPL मसले पर भिड़े हुए हैं. आपको क्या लगता है? क्या होगा मुंबई का?"
"अरे कुछ नही होगा" भईया पूरी तरह से बेपरवाह थे.
"अच्छा भैया, ये बताइए कि राहुल गाँधी के स्वागत की तो बड़ी-बड़ी बातें हुई थी. फिर क्या हुआ? गरजनेवाले बरसे नही!"
मैंने सोचा था कि कोई तगड़ा जवाब मिलेगा पर भईया तो सिर्फ मुस्कुरा कर रह गए.
"क्या भईया? कुछ तो बोलिए. यहाँ बोलनेवाले क्या-क्या नही बोल जाते हैं. अपनी लोकप्रियता का नाजायज़ फायदा उठाते हैं." मैंने भईया को उकसाया.
भईया ने धीरे से मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोले, "भक्त है तो भगवान है."
वो तो धीरे से आगे बढ़ गए पर मैं सोचता रहा.