आज के पोस्ट में मैं चर्चा करना चाहूँगा जल-प्रदूषण की। पिछले पोस्ट में मैंने जल के बारे में मोटे तौर पर बताया था। पोस्ट के अंत में जल के कुछ गुणों की बात कही थी मैंने।
1. जल में आंखों से दीखने वाले कण और जीव-वनस्पति नही हों।
2. हानि पहुँचानेवाले सुक्ष्म जीव या कण न हों।
3. जल का pH संतुलित हो।
4. जल में पर्याप्त मात्र में oxygen घुला हो।
जब प्रदूषण की बात करें तो उपरोक्त चारों गुण यदि ना हों तो कहेंगे कि जल उपयोग के लायक नही है। प्रथम बिन्दु की बात करें तो पाएंगे कि आंखों से दीखने वाले कण और वनस्पति कुछ तो सीधे तौर पर हमारे द्वारा फेंके गए ठोस कचरे का परिणाम है और कुछ प्राकृतिक कारणों से हैं। प्राकृतिक कारणों में भूमि-क्षरण, प्राकृतिक परिवेश के पौधे इत्यादी हैं। जहाँ पर भोजन होगा, खाने वाले तो वहाँ पहुंचेंगे ही। फिर चाहे वो सूक्ष्म जीव ही क्यों न हों। रही बात जल के pH और oxygen की तो यह सब इंसानी कारनामे हैं। हमारे कल-कारखानों से निकलता औद्योगिक कचरा नदियों और भूमिगत जल-स्त्रोतों को खतरनाक रसायनों के मिलावट से प्रदूषित कर रहा है।
भूमिगत जल-स्त्रोतों का अत्यधिक दोहन होने से उसमे अनेक तत्वों की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुँच गयी है। इसको हम ppm में मापते हैं जिसका अर्थ होता है पार्ट प्रति मिलियन। ओक्सेजन को BOD and COD में मापते हैं।
BOD यानि Biological oxygen demand और COD यानि chemical oxygen demand. pH जल की acidity या alkaline nature को बताता है। साधारण जल का pH 7 होता है। इससे ज्यादा हुआ तो alkaline और कम हुआ तो acidic होता है।
जल में विभिन्न प्रकार के कण की उपस्थिति जल को Hard बनाती है। नाम के मुताबिक ही ऐसे जल से कोई काम कर पाना हार्ड होता है। जल से तमाम चीजों को बाहर कर उसे उपयोग के लायक बनाया जाता है। इसे Water treatment कहते हैं।
अगले पोस्ट में Water treatment की चर्चा करूंगा।
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