Friday, January 16, 2015

गोवा की सैर: दूधसागर प्रपात व अन्य


सुबह-सुबह मोबाइल के बजने से जब हमारी नींद खुली तो देखा कि अनिलजी फोन पर थे. उन्होंने कहा कि सवा-सात बज रहे हैं और मैं गाड़ी के साथ आपका इंतज़ार कर रहा हूँ. कल के व्यस्त कार्यक्रम ने हमें पस्त कर दिया था किन्तु अनिलजी के एक काल ने जैसे हमारे पैरों में पहिये लगा दिए. हमने उन्हें थोड़ा इंतज़ार करने को कहा किन्तु ये इंतज़ार भी घंटे भर का हो गया. सवा-आठ बजे हम गाड़ी में थे और गाड़ी हवा से बातें कर रही थी. अनिलजी को जब यह मालूम हुआ कि हम लोगों ने नाश्ता भी नहीं किया है तो उन्होंने नवतारा रेस्त्राँ के सामने अपने गाड़ी लगा दी. संगोल्डा क्षेत्र में स्थित ये रेस्त्राँ अभी पूरी तरह से खुला नहीं था किन्तु हमें गरमा-गर्म नाश्ता और कॉफ़ी, दोनों ही मिल गए. गोवा विधानसभा के सामने से होते हुए जब हम मांडवी नदी ( #RiverMandvi )पर बने पुल को पार कर रहे थे, तब सवा-नौ बज रहे थे. यहाँ से गाड़ी काफी दूर तक नदी के किनारे-किनारे गयी. वहां दलदली ज़मीन पर मछली पकड़ने का जाल लगा देख हमें उत्सुकता हुई. पता चला कि ज्वार-भाटे के साथ यहाँ मछलियाँ पकड़ी जाती हैं.
Fishing Nets in shallow water
इस रास्ते पर कुछ दूर तक तो ये एहसास ही नहीं होता कि आप भारत में हैं. ऐसा लगता है मानो हम पुर्तगाल के किसी गाँव से गुजर रहे हैं. एक बार गाड़ी शहर की सीमाओं से बाहर हुई तो पहाड़ो पर धुंध देखकर ये बता पाना मुश्किल था कि अभी सुबह के तकरीबन दस बज रहे हैं.
The foggy morning

नज़ारों का आनंद लेते हुए जब हम अपने गंतव्य तक पहुंचे तब पौने-ग्यारह बज रहे थे.
Just a step from Kullem stand
कुलेम रेलवे स्टेशन के पास दूधसागर ( #DudhSagar ) जीप स्टैंड है. यहाँ एक काउंटर है जहाँ हमने अपना पंजीकरण कराया. पंजीकरण शुल्क 350 रूपए प्रति व्यक्ति था जो दरअसल गाड़ी का टिकट था. फिर 30 रूपए प्रति व्यक्ति देने पर हमें लाइफ-जैकेट मिला, इस हिदायत के साथ कि अगर इसे उतारा तो तुम्हारा जाना रद्द! वहां एक सज्जन थे जो सारी गतिविधियों की निगरानी कर रहे थे. गाड़ी मिलने में देर होने लगी तो मैंने शिष्टाचारवश उनसे पूछा – सर, आपका नाम क्या है? वे भड़क गए – सभी लोग यहाँ मुझे अंकल बुलाता है. यहाँ तक कि मेरा बच्चालोग भी मेरे को अंकल बुलाता है. तुम भी अंकल ही बोलो और अपना काम बताओ. मैं स्तब्ध था. फिर मैंने पूछा कि काफी देर हो गयी और हमें गाड़ी नहीं मिली. तब उन्होंने बताया कि दूधसागर जाने के लिए तकरीबन 50 गाड़ियाँ चलती हैं किन्तु अभी सिर्फ 30 गाड़ियों को फिटनेस प्रमाण-पत्र मिला है. वे बोले – तुम लोग लक्की है मैन कि ट्रिप चालू हो गया. अभी मंडे को ही ट्रिप शुरू हुआ है नहीं तो बारिश में ये बंद हो जाता है. हमने राहत की सांस ली कि आना सफल रहा वरना.
Uncle in blue
खैर, घंटे भर बाद हम गाड़ी के अन्दर थे. यहाँ से प्रपात तक का सफ़र रोमांचक भी था, डरावना भी. कभी जंगल अपनी विशालता से मुग्ध करता, कभी अपनी जटिलताओं से साँसे रोक देता.

Roaring through the mighty flow
सवा घंटे में 10 किलोमीटर का सफ़र तय कर हम जल-प्रपात के पास पहुंचे. फिसलन भरे उबड़-खाबड़ रास्तों को पार करके जब हम प्रपात तक पहुंचे, लगा कि इतनी मेहनत से यहाँ तक आना सफल रहा.
Dudhsagar Falls

जंगल के इस साहसिक अभियान ने हमारे अन्दर एक नया जोश भर दिया. हमें करीब एक घंटे तक यहाँ रहने की इजाज़त थी, सो दो बजते ही हमलोग गाड़ी की ओर वापस चल दिए.
Devil's Canyon

लौटते वक़्त ड्राईवर ने सिर्फ एक घंटा ही लगाया और हम जल्दी-जल्दी लाइफ-जैकेट लौटाकर वापसी के सफ़र पर निकल पड़े.

आधे-घंटे के सफ़र के बाद हम सहकारी स्पाइस फार्म के सामने थे. घड़ी देखा तो पौने-चार बज रहे थे. वैसे तो हमने यहीं अपने दोपहर के भोजन का सोच रखा था किन्तु यहाँ घूमने में कम-से-कम तीन घंटे लगते. सो, हम आगे बढ़ गए.
Farmagudi Fort


ShantaDurga Temple

रास्ते में भोजन किया और शांतदुर्गा मंदिर पहुंचे. ये मंदिर काव्लेम में स्थित है और यहाँ देवी दुर्गा के शांत-स्वरुप की पूजा होती है. मंदिर की भव्यता और अनूठा स्थापत्य देखने योग्य है. यहाँ हमने बीस मिनट बिताये.
Wax meuseum

यहाँ से निकले तो लगभग चालीस-पैंतालीस मिनट में गोवा के मोम-संग्रहालय ( #GoaWaxMuseum ) पहुँच गए. यहाँ प्रवेश के लिए कुछ साठ या पैंसठ रूपए प्रति-व्यक्ति का शुल्क निर्धारित है. ये जगह छोटी है. सिर्फ दस मिनट में आप इसे पूरा घूम लेंगे और अगर बच्चे साथ नहीं हैं तो इसे छोड़ा भी जा सकता है.

Bascilica of Bom Jesus

फिर हम बोम जीजस ( #BomJesus ) का महागिरिजाघर गए. इसका निर्माण १५९४ ईo में किया गया था. यहाँ संत फ्रांसिस ज़ेवियर का शारीरिक अवशेष रखा गया है. यहाँ हमें पच्चीस मिनट लग गए. जब हम निकले तो सामने अवस्थित म्युजिअम  के बंद होने का समय होने लगा था. हम अब थक भी गए थे, तो म्युजिअम और चर्च को बाहर से ही देखते हुए हम “वायसराय का कमानी-द्वार” देखने गए. 

Se Cathedral

Viceroy's Arch


इसे फ्रांसिस्को ड गामा ने अपने प्रपितामह वास्को ड गामा की स्मृति में बनवाया था और यह इस शहर पर पुर्तगालियों के विजय का प्रतीक था.

Ruins of the church of St. Augustine

यहाँ से निकले तो संत अगस्टीन चर्च के अवशेष देखते हुए वापसी को निकल पड़े. सूरज अब छिपने को था. हम भी थक कर चूर हो चुके थे. सो सीधे कमरे में आये, खाना खाया और घोड़े बेच कर सोने चल दिए!

दो दिनों तक लगातार घूमने के बाद हमने तय किया कि अब बारी समुद्र का मज़ा लेने की है. अनिलजी ने बताया कि इसके लिए कालान्गुट बीच ( #Calangute ) ठीक रहेगा. हमने उनकी बात पर अमल करते हुए नाश्ते के बाद का प्रोग्राम बनाया.
People enjoying on Calangute Beach


Riding on the waves

समुद्र-तट पर हमें अनेक दलाल मिले किन्तु हमने काउंटर से टिकट कटाया और विभिन्न जल-क्रीड़ाओं का आनंद लिया. प्रत्येक गतिविधि के लिए अलग शुल्क निर्धारित है जोकि 200 से 500 रूपए प्रति-व्यक्ति प्रति-फेरा तक है. दोपहर के दो बजते-बजते हम थक भी गए थे और बुरी तरह से भीग भी गए थे. सो हमने लौटने का फैसला किया. हमें पता चला कि यहाँ के सुलभ शौचालय में कपड़े बदलने की सुविधा उपलब्ध है. हमारे पास कपड़े तो थे ही, तो हमने सोचा कि गीला रहने से अच्छा है कपड़े बदल लिए जायें. जब हम अंदर गए तो चारों ओर गंदगी का अंबार था. ऐसा लगता था कि सदियों से यहाँ सफाई नहीं हुई हो. जैसे-तैसे हमने नाक बंद कर कपड़े बदले. ऐसी घटिया व्यवस्था के भी हमें 20 रूपए प्रति-व्यक्ति के हिसाब से देने पड़े.

वापस आकर हमने नहाया, खाया और आराम करने का सोच ही रहे थे कि अनिलजी ने फोन करके याद दिलाया कि हमने छः बजे के रिवर-क्रूज का टिकट बुक करा रखा है. अगर हम समय से नहीं निकले तो हमें बाद वाले जहाज में जगह मिलेगी. फिर क्या था, हम सब पुनः तैयार होने में लग गए. नियत समय पर हम पणजी स्थित सैंटा मोनिका रिवर क्रूज ( #GoaRiverCruise ) प्रस्थान स्थल पर पंक्तिबद्ध होकर अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे.

Ferry as seen from the bridge

Children enjoying on Santa Monica river cruise

A view from the cruise


हमें जल्द ही बैठने की अच्छी जगह मिल गयी. जलयान भी नियत समय पर अपनी यात्रा पर निकल गया. सामने एक स्टेज बना था और पीछे खाने-पीने का स्टाल लगा था. इन दोनों के बीच था अंतहीन मस्ती-मजा का कार्यक्रम. स्थानीय कलाकारों ने गोवा की संस्कृति और दर्शन के दर्शन तो कराये ही, दर्शकों को भी साथ में नचाया. लहरों से खेलता जलयान धीरे-धीरे समुद्र की ओर बढ़ने लगा. डूबते सूरज की लालिमा जब बलखाती लहरों से टकरा कर चमकती तो ऐसा लगता मानो पानी पर स्वर्ण-कण बिखरे पड़े हों. बाहर अद्भुत नज़ारे और अंदर जोशीला कार्यक्रम, समझ नहीं आ रहा था कि बाहर देखें या अंदर. डेढ़ घंटे का ये सफ़र कब शुरू हुआ और कब ख़त्म, इसका पता ही नहीं चला. जब हम वापस आये तो अपने साथ मुस्कुराहटें लेकर लौटे. सुबह की थकान गायब हो चुकी थी. रही-सही कसर राजू के शानदार खाने ने पूरी कर दी. अंत भला तो सब भला.

आज गोवा में हमारा चौथा और अंतिम दिन है. तीन दिनों के अतिव्यस्त और थका देने वाले कार्यक्रम के बाद आज हमने थोड़ा सुस्ताने का मन बनाया. आखिर हमें वापसी की लम्बी यात्रा भी तो करनी थी. तो हमने सुबह में स्थानीय जगहों को पैदल ही देखने का मन बनाया.

Chauranginath Gram Devsthan

शुरुआत हुई श्री चौरंगीनाथ ग्राम देवस्थान से. यहाँ पूजा-अर्चना कर हम पैदल ही अगल-बगल की खोजबीन करने निकल पड़े. यहाँ आस-पास ही एक वाटर-पार्क और एक गो-कार्टिंग ट्रैक भी है. हरी-भरी पहाड़ियों से घिरा ये इलाका अत्यंत शांत और मनोरम है. आस-पास के क्षेत्रों का परिभ्रमण कर हम खाने के लिए लौट आये. हमें शाम की गाड़ी पकड़नी थी, तो हमने अपना सामान समेटा, राजू और अनिलजी को सधन्यवाद उनके प्रयासों को सम्मानित करने का प्रयास किया और अनेक यादें समेटे गोवा से रुखसत हो लिए.

Tuesday, January 13, 2015

गोवा की सैर: उत्तरी गोवा


सुनहरी रेत पर फ़िसलती चाँदनी, रंग-बिरंगे झाड़-फानूसों की अठखेलियाँ, नाना प्रकार के व्यंजन और मौज-मस्ती में लीन ज़िन्दगी से बेपरवाह युवा, ज़ेहन में सिर्फ एक ही छवि बनाते हैं – गोवा! क्षेत्रफल के हिसाब से देश का ये सबसे छोटा राज्य देसी-विदेशी सैलानियों की सूची में ऊपर रहता है।

कुछ दिनों पूर्व यूँ ही बनते-बनते बात बन गई और मैं सपरिवार निकल पड़ा गोवा की सैर को। मेरे जो मित्र वहाँ से हो आए थे, उनकी सलाह पर अमल करते हुए मैं मुंबई के रास्ते गोवा की ओर निकल पड़ा। मुंबई से सुबह-सुबह गोवा के लिए एक रेल चलती है – मांडवी एक्सप्रेस। दोस्तों ने बताया था कि इस गाड़ी की ख़ासियत इसकी पैंट्री है। एक बार रेलगाड़ी मुंबई की सरहदों से बाहर हुई तो नजारों ने यूँ बाँध लिया कि बस। हरे-भरे पहाड़, बलखाती नदियाँ, नारियल के कतारबद्ध पेड़, सुंदर गाँव और साथ चलते सड़क पर सरपट दौड़ते वाहन, बाहर नज़ारे तो मानो थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे और अन्दर पैंट्रीवाले खाने के विविध व्यंजनों की रफ़्तार थमने नहीं दे रहे थे। इडली, मेदुवडा, वड़ापाव, उपमा-शीरा और भी न जाने क्या-क्या खा-खा कर हमारी हालत ऐसी थी कि दोपहर के भोजन के लिए पेट में जगह नहीं बची। अनेक स्टेशनों, पुलों और सुरंगों से होती हुई हमारी रेल तकरीबन तीन घंटे विलंब से थिविम स्टेशन पर पहुंची।








हमारे मेज़बान (मैं उन्हें मेज़बान ही कहना पसंद करूंगा) ने हमें पहले ही बता दिया था कि स्टेशन से बाहर निकलते ही प्री-पेड काउंटर से हमें टैक्सी लेना है। आधे घंटे में हम उनके निवास पर थे। हमारा कमरा और गरमा-गर्म खाना, दोनों ही तैयार थे। वहीँ हमारी मुलाकात राजू से हुई। अगले तीन दिनों तक वही हमारा व्यवस्थापक, बावर्ची और टूर-प्लानर था। उसने हमसे पुछा – आप गोवा क्यूँ आये हैं? सवाल अटपटा था। हम चकराए। फिर उसने बताया कि गोवा आने वाले लोग अलग-अलग भावनाएँ और योजनाएँ लेकर यहाँ आते हैं। हर किसी को उसके पसंद के गोवा से मिलवाना ही उसका काम है। “आप खुश तो मैं भी खुश!” उसने हँसते हुए कहा था।

अगले दिन सुबह-सुबह उसने चाय के साथ हमें अनिलजी से मिलवाया। वे अपनी गाड़ी लेकर पर्यटकों की सेवा में उपस्थित रहते हैं। हमने उन्ही से पुछा कि हमें क्या देखना चाहिए और किस प्रकार उसको व्यवस्थित करना है। उन्होंने कहा कि आज सुबह से शाम तक मैं आप सबको उत्तरी गोवा घुमा लाता हूँ। जब हमने उनसे पैसों की बात की तो बोले, पहले आप घूम लो, अच्छा लगे तो पेट्रोल के दाम दे देना।

फिर क्या था। हमने नाश्ता किया और चल पड़े उनके साथ। हालाँकि हमें थोड़ी देर हो गयी थी पर हम लोग साढ़े-ग्यारह बजे अगुआडा फोर्ट ( #FortAuguada ) में थे। मांडवी नदी के उत्तरी मुहाने पर बना यह किला शानदार है। दो तलों वाला यह किला १६१२ में पुर्तगाली पोतों के विश्राम-स्थल और पेयजल आपूर्ति केंद्र के रूप में बनवाया गया था। उपरी तल में करीब 24 लाख गैलन पानी जमा रखने की सुविधा है। यहाँ का लाइट-हाउस देखने लायक है। इस स्थल पर खड़े होकर नदी पार पंजिम की खूबसूरती देखते ही बनती है। किले के निचले तल का उपयोग जहाजों की गोदी के रूप में होता था।


यहाँ करीब एक घंटे बिताने के बाद हम निचले तल की ओर निकल पड़े। रास्ते में हमने नेरुल नदी और उसमें चल रही अनेक नौकाएँ देखीं। यहाँ मैं एक बात बता दूँ कि यहीं से डॉलफिन-दर्शन के लिए नौकाएँ उपलब्ध होती हैं। नेरुल नदी के किनारे से होते हुए ताज-विवांता के बगल से गुजर कर हम इस स्थल पर सिर्फ पंद्रह मिनट की ड्राइव में ही पहुँच गए। यहाँ खड़े होकर सिंक्वारिम बीच पर जल-क्रीड़ा का आनंद लेते सैलानियों को देखने का अपना ही एक अनुभव था। अनेक दलालों ने हमें भी सस्ते दर पर वाटर-स्कूटर और पारा-ग्लाइडिंग करने के लिए आमंत्रित किया किन्तु हमें इनमे दिलचस्पी तो थी नहीं, सो उन्हें मना कर दिया। यहाँ तकरीबन बीस-पच्चीस मिनट बिताने के बाद हम कांडोलिम बीच की ओर बढ़ चले।
अब दिन के कोई सवा-एक बज रहे थे। कांडोलिम-बीच पर भीड़ भी ज्यादा नहीं थी। यहाँ सफाई अच्छी थी किन्तु लहरें काफी ऊँची उठ रही थी। यहाँ हमें एक shack नज़र आया जिसका नाम था – सन्नी-साइड-अप। लाइव संगीत पर झूमते लोग और उन्हें खिलाने में व्यस्त वेटर, अन्दर का माहौल बिलकुल अलग ही था। अनिलजी ने हमें बताया कि नए साल में यहाँ ज़बरदस्त पार्टियाँ होती हैं। हाँ, एक बात तो मैं बताना भूल ही गया। shack का हिंदी रूपांतरण शायद मड़ैया या झोपड़ी हो, किन्तु गोवा में ये सबसे ज्यादा पाए जाने वाले और सर्वाधिक दर्शनीय स्थलों में से एक होते हैं। गोवा का पर्यटन व्यवसाय इनके बिना अधूरा है। ये पर्यटकों को खाने-पीने के साथ आराम और मनोरंजन भी मुहैया कराते हैं। यहाँ भी बीस-पच्चीस मिनट बिताने के बाद हम लोग कलांगुट बीच की ओर बढ़ चले।

रास्ते में मैंने ध्यान दिया कि ऐसी कई दुकानें हैं जिनके सूचना-पट्ट पर रूसी भाषा में लिखा हुआ था। अनिलजी ने हमें बताया कि रूसियों ने गोवा में काफ़ी अचल संपत्ति खरीद रखी है। एकीकृत रूस और यूरोपीय देशों के नौजवान पर्यटक अक्सर इनके यहाँ देखे जाते हैं। कलांगुट एक भीड़-भाड़ वाला इलाका है। यहाँ पर्यटकों के मनोरंजन के लिए काफी कुछ मौज़ूद है। बीच की ओर जाने वाले रास्ते में गोवा-दमन और दिउ के प्रथम मुख्य-मंत्री स्वर्गीय दयानंद बांदोडकर की प्रतिमा है। इस बीच पर आनेवाले ज्यादातर सैलानी भारतीय थे। लोगों का तो मानो रेला लगा हुआ था किन्तु फिर भी सभी अपने-आप में जैसे अकेले थे। एक दूसरे से बेपरवाह, अपनी ही मस्ती में डूबे हुए। यहाँ जल-क्रीड़ा हेतु अनेक साधन तो हैं ही, भोजन की भी कोई कमी नहीं। अगर आप पैसे खर्च करने को तैयार हों तो टैटू बनवा लीजिए, या कोई वस्त्र ले लीजिए और कुछ भी नहीं सूझ रहा हो तो शराब तो टैक्स-फ्री है ही। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि यहाँ की पुलिस को शराब सूँघने में महारत है और पी कर आप तट पर नहीं जा सकते। यदि आप इसकी ज़बरदस्ती करें तो हो सकता है कि आप गिरफ्तार कर लिए जाएं। आखिर ये आपके खुद की सुरक्षा के लिए ज़रूरी जो है।

बहरहाल, अब पेट में चूहे कूदने लगे थे तो हमने तय किया कि घर वापस चलते हैं और राजू के हाथ का गर्मा-गर्म खाना खाते हैं। तीन बजते-बजते हम सब खाने की मेज पर व्यस्त हो चुके थे। सिर्फ एक घंटे में हम तरोताज़ा होकर वापस निकल चुके थे। सिर्फ बीस मिनट की ड्राइव के बाद हम सब चापोरा फोर्ट के पास थे। पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो चुका यह किला एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। रोड से किले तक का रास्ता बहुत ही उबड़-खाबड़ है और मुरुम सी मिट्टी होने के कारण पाँव जमाना मुश्किल होता है। सावधानी से चढ़ते हुए जब हम ऊपर पहुंचे तो हमारी सांसें थमी-की-थमी रह गयी। नज़र जिधर घूमती थी, नज़ारे मन मोह लेते थे। पूर्व दिशा में चापोरा नदी का मुहाना और चापोरा बीच है जबकि दक्षिण में वागाटर-बीच है। अरब सागर का मनमोहक नज़ारा मजबूर कर देता है कि हम कहें – “दिल चाहता है...”। यहाँ हमने चालीस मिनट बिताये। वहां मौज़ूद अधिकांश लोग अब जाने लगे थे तो हम भी साथ हो लिए।



चापोरा किले ( #FortChapora ) से निकल कर सिर्फ दस मिनट में हम लोग वागाटर-बीच पर थे। इस बीच से चापोरा फोर्ट को देखने का एहसास ही अलग था। यहाँ से हम अंजुना बीच गए। जब पर्यटन का मौसम अपने चरम पर होता है, अंजुना बीच का फ़्ली-मार्केट पर्यटकों के बीच खासा लोकप्रिय होता है। वैसे ये बताते चलें कि आपने अपने शहर के साप्ताहिक हाट के बारे में तो ज़रूर ही सुना होगा। हमारे शहर में ये मंगलवार को लगता है और इसलिए मंगला-हाट कहलाता है। ये फ़्ली-मार्केट भी कुछ ऐसी ही चीज़ है। यहाँ से हम बागा-बीच पहुंचे। सूरज लहरों के पीछे छिप जाने को बेकरार हो रहा था, और हम उन लम्हों को अपनी यादों में समेट लेने के लिए बेताब थे। जब हम बीच की ओर बढे तो देखा कि चारों ओर काफी चहल-पहल है किन्तु एक स्थान-विशेष पर लोगों का हुजूम जैसे उमड़ा जाता था। नज़दीक जाकर देखा तो आश्चर्यचकित रह गए। वहाँ हिंदी फिल्मों के अभिनेता चंद्रचूड़ सिंह की शूटिंग चल रही थी। हम भी दर्शकों की भीड़ में शामिल हो गए। पाँच मिनट में ही शूटिंग ख़त्म और पैक-अप! फिर अभिनेता और अभिनेत्री के साथ तस्वीर खिंचवाने का दौर शुरू हुआ। हमने भी बहती गंगा में हाथ धो लिए और फिर अस्ताचलगामी सूर्य को विदाई देने चल दिए।





सूरज धीरे-धीरे लहरों के पीछे छिप गया और सिर्फ उसके लाल साफ़े के निशान रह गए। निशा ने शनैः- शनैः अपने आँचल लहराए और सारे जहाँ को अपने आगोश में लेने को मचल उठी थी। दिनभर की भाग-दौड़ से हम भी थक चुके थे, तो घोंसले की ओर लौटती चिड़ियों के झुण्ड के साथ हम भी अपने आशियाने की तरफ निकल गए। आज का दिन बहुत थकाने वाला था किन्तु हमने बहुत कुछ देखा और जाना। अनिलजी ने कहा कि सुबह साढ़े-सात बजे तैयार रहें, कल हम लोग दूधसागर जलप्रपात देखने चलेंगे। तो कल मिलते हैं।