"२९ अगस्त यानि दद्दा का जन्मदिन।"
"ऐ सर्किट, दद्दा बोले तो?"
"क्या भाई, दद्दा को नही जानता?"
"अबे सर्किट, PSPO का ad मत कर। मेरा भेजा फ्राई मत कर, वरना गांधीगिरी भूल के टपका डालूँगा।"
"सॉरी भाई, मिस्टेक बिकेम रोंग! भाई, हॉकी के एक महान खिलाड़ी थे - मेजर ध्यानचंद। उन्ही को भाई लोग दद्दा बुलाते थे।"
"ऐ सर्किट, ये भाई लोग हॉकी भी खेलते थे क्या?"
"क्या भाई... आप भी! भाई लोग बोले तो उनके चाहने वाले। एक बात मालूम भाई, उस टाइम पे दुनिया का एक भाई था... भाई बोले तो अपुन के जैसा दुनिया पे राज करने का सपना देखता था - हिटलर। बर्लिन ओलंपिक में जब बाल दद्दा के हॉकी स्टिक से हटती नही थी तो उसने स्टिक बदलवा दिया। "हॉकी के जादूगर" का जादू हिटलर पर भी चला भाई! वो तो अपने दद्दा को अपनी आर्मी का जनरल बनाना चाहता था लेकिन दद्दा ही नही गए।"
"लेकिन आज तेरे को ध्यानचंद कि याद क्यों आई?"
"क्योंकि आज उनका जन्मदिन है।"
"ऐ सर्किट, अपुन हॉकी तो नही खेल सकते लेकिन हॉकी के इस जादूगर की याद में दो मिनट कि श्रधांजलि तो दे ही सकते हैं।"
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