Monday, February 18, 2008

सिंहो की नही टोलियाँ, साधू ना चले जमात!

बचपन में पढ़ा था - अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता। साधारणतया यह बात सत्य है, किंतु इस दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने सारे नियमों को ग़लत साबित किया।
हमारे दशरथ मांझी भी उन्ही में से एक थे। ऐसी ही हैं खुशबु। और ऐसे ही हैं राघव महतो।
अब आप जरूर पूछेंगे "दशरथ मांझी कौन?" "खुशबु कौन?" "राघव कौन?"
यह कुछ ऐसे लोग हैं जिन्होंने कभी व्यवस्था का रोना नही रोया। श्रीकृष्ण के प्रिय अर्जुन की तरह कर्मभूमि में जम गए। और जामे तो कुछ यों कि कहना पड़ा
कौन कहता है कि आसमां में सुराख नही हो सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों
दशरथ मांझी: गया जिले के, पहाड़ से ठन गयी। लगन ऐसी लगी कि पहाड़ को काट कर ३०० फीट का रास्ता बना दिया। वो भी अकेले, बिना किसी मदद के।
खुशबु: मुज्ज़फ्फरपुर के रामलीला गाछी की, छोटी सी उम्र में बड़ा कारनामा। जिस जगह मूलभूत सुविधाएं भी नही, सहेलियों साथ मिल अपने इलाके की घटनाओं और खबरों को संकलित कर बनाया "अप्पन समाचार " ।
राघव: वैशाली जिले के, ट्रान्जिस्टर रेडियो बनाते बनाते ट्रांस्मित्टर बनाया और शुरू हो गया: राघव का FM .
इन लोगों में एक बात एक थी. इन्हें व्यवस्था से शिकायत कम और अपने ऊपर भरोसा ज्यादा था. समाज की दिशा-दशा बदलने वाले इन पार्थ को पार्थसारथी की जरूरत है. जरूरत है ऐसे लोगों की जो प्रतिभाओं को पहचान दिला सकें, उनका पोषण कर सकें.

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