Sunday, July 25, 2021

पारिजात


 

Thursday, July 15, 2021

परछाई

 जीने की कोशिश करता आदमी,

चला जा रहा, बिना रुके, बिना थके


नही, उसकी कोई कहानी नही है,

परछाई है वो, बिना किसी शरीर के


परछाईयों की कोई कहानी

न थी, न कभी होगी। याद रखना।


कहानी तो स्थूल शरीर की होती है

रौशनी के मोहताज परछाई की नही


पर परछाईयाँ समेटे रहती हैं कहानियाँ

कई किस्से, हँसते-रोते, जागते-सोते


जीने की कोशिश करता आदमी,

बुनता जाता है, परछाईयों के जाल


उन जालों में फँसा समय, बन जाता

कहानी, कोशिश चलती रहती, जीने की।

Saturday, July 10, 2021

निशान


बहती नदियाँ

बहा ले जाती हैं

समय के निशान


किनारे रह जाते

बस मूकदर्शक से

रिसते घाव लिए


बहती नदी संग

बहता देखते समय

देखते अपने जख्म 


लगाया जो समय ने

किनारों को काटते, 

डुबाते, आते-जाते


बदनाम होती नदी,

चुप देखते किनारे

समय के निशान!




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