Friday, August 29, 2008

दद्दू तुम!

"२९ अगस्त यानि दद्दा का जन्मदिन।"
"ऐ सर्किट, दद्दा बोले तो?"
"क्या भाई, दद्दा को नही जानता?"
"अबे सर्किट, PSPO का ad मत कर। मेरा भेजा फ्राई मत कर, वरना गांधीगिरी भूल के टपका डालूँगा।"
"सॉरी भाई, मिस्टेक बिकेम रोंग! भाई, हॉकी के एक महान खिलाड़ी थे - मेजर ध्यानचंद। उन्ही को भाई लोग दद्दा बुलाते थे।"
"ऐ सर्किट, ये भाई लोग हॉकी भी खेलते थे क्या?"
"क्या भाई... आप भी! भाई लोग बोले तो उनके चाहने वाले। एक बात मालूम भाई, उस टाइम पे दुनिया का एक भाई था... भाई बोले तो अपुन के जैसा दुनिया पे राज करने का सपना देखता था - हिटलर। बर्लिन ओलंपिक में जब बाल दद्दा के हॉकी स्टिक से हटती नही थी तो उसने स्टिक बदलवा दिया। "हॉकी के जादूगर" का जादू हिटलर पर भी चला भाई! वो तो अपने दद्दा को अपनी आर्मी का जनरल बनाना चाहता था लेकिन दद्दा ही नही गए।"
"लेकिन आज तेरे को ध्यानचंद कि याद क्यों आई?"
"क्योंकि आज उनका जन्मदिन है।"
"ऐ सर्किट, अपुन हॉकी तो नही खेल सकते लेकिन हॉकी के इस जादूगर की याद में दो मिनट कि श्रधांजलि तो दे ही सकते हैं।"

Sunday, August 10, 2008

उद्यम-सार

आज बड़े दिनों बाद मटकू भइया फिर से दीखे।
"भइया प्रणाम"
"आनंदित रहो! कहाँ था? दिख नही रहा था?"
"था तो यहीं, लेकिन इधर काम का कुछ बोझ बढ़ गया था। इसलिए देर तक काम करना पड़ रहा था। आप सुनाइए... आजकल नीतीश के सुशासन के बड़े चर्चे चल रहे हैं। अखबारों में देखा कि नरेगा की सफलता ने पंजाब में बिहारी मजदूरों की किल्लत कर दी है । "
"अब जब तुम बात निकालिए दिए हो तो तुमको एक छोटा सा कहानी सुनाते है। एक पंजाबी और एक बिहारी को एक ढाबे में रोटी बनाने की नौकरी मिली। दोनों नया था... कभी रोटी तऽ बनाया नही था। खैर... जैसे तैसे दोनों सीखने लगा। जिस दिन बिहारी का रोटी गोल बना वो कोशिश करने लगा कि रोटी कैसे बढ़िया फूले। जब रोटी फूलने लगा तऽ दिन रात यही कोशिश में लगा रहता था की रोटी और ज्यादा गोल कैसे हो... और ज्यादा कैसे फूले।"
"और पंजाबी का क्या हुआ भइया?" मैंने पुछा।
"जिस दिन पंजाबी का रोटी गोल होकर फूल गया, वो बगल में दूसरा ढाबा खोल लिया! कुछ समझा?"
मैं समझने की कोशिश करता रहा.....