Wednesday, August 24, 2011

नास्तिक

उन्होंने पूछा
सुना कि तुम
नास्तिक हो?
सोच में मैं पड़ गया
उनसे बोला -
धर्म ने आपके
मुझे क्या दिया है ?
चंद मंदिर
चंद मस्जिद
चंद गिरिजा, गुरूद्वारे
चाहते हैं कि मैं
जियूं बस इनके सहारे ?

आज मैं आपको बताऊँ
एक सच्ची दास्ताँ
मिल गए यूँ ही अचानक
एक दिन मुझे भगवान
मैंने पूछा - आप कौन?
हंस कर कहा
अरे नादान
मैं भगवान!
मैंने पूछा -
आप तो राम जैसे नही?
कृष्ण - बुद्ध जैसे भी नही
ईशा की तरह भी नही
कुछ कहते हैं
आप हैं कैलाश पर
कुछ कहते
रहते हैं मक्का में?
मेरे संशय पर
वे मुस्कुराये
बोले -
"रहता हूँ मैं
तुम्हारे ही अन्दर
जिस रूप में चाहो
मुझे देख लो
मैंने बनाई
सारी सृष्टि
जब बनाया तुम्हे
खुद पर इतराया
डाल दिया तुम में
अंश अपना
सृष्टि की श्रेष्ठतम रचना
मानव
आज लड़ता है
मेरे नाम पर!"

मैंने उनसे पूछा:
क्या आपने कभी
अपने भगवान को देखा है?
वे चुप रहे
मैं बोला -
मैंने देखा है.
अपने अन्दर के भगवान को
मैं हर सांस में
उन्हें महसूस करता हूँ.
धड़कते हैं वो, दिल बन कर
विचार बन, बहते हैं मन में
आँखें खोलता हूँ तो
रंग बन कर समा जाते हैं

हो सकता है

आपकी नज़र में

मैं नास्तिक हूँ

मगर

मैं नास्तिक ही अच्छा!











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