पिछले दो पोस्ट में मैंने जल के बारे में कुछ जानकारियाँ दी थी। आज बताऊंगा की जल शुद्धिकरण कैसे किया जाए।
जल की सफ़ाई करने का सबसे सरल उपाय है - उसको छान लेना। गाँव-देहातों में लोग पुरानी साफ धोती का इस्तेमाल जल को छानने में करते हैं। यह सबसे आसान और सस्ता तरीका है। इस तरीके से जल के बड़े कण और जीव-वनस्पति निकल जाते हैं। किंतु यह उपाय जल में मौजूद सूक्ष्म जीवों और गंध का सफाया नही करता।
दूसरा रास्ता है पानी को उबाल लेना। यह काफी हद तक कारगर तो है किंतु इसमे उर्जा व्यय होती है। उबालने के समय को लेकर काफ़ी भ्रम है किंतु काफी सारे सूक्ष्म जीव सिर्फ़ १०० डिग्री का तापमान आते-आते ख़त्म हो जाते हैं। ज्यादा उबालना उर्जा की बर्बादी के साथ-साथ भारी कणों की सघनता बढ़ा देता है।
तीसरा रास्ता है रसायनों का प्रयोग। आम तौर पर क्लोरीन और आयोडीन का इस्तेमाल होता है। इनकी कार्य-कुशलता इनकी सांद्रता और प्रतिक्रिया के लिए उपलब्ध समय पर निर्भर करता है।
व्यवसायिक तौर पर शुद्ध जल के लिए activated carbon bed जैसी तकनीकों का इस्तेमाल होता है। ये शोध का विषय हो सकता है, किंतु इस पोस्ट को मैं और लंबा नही करना चाहता। कभी समय मिला तो rain water harvesting जैसी तकनीक पर चर्चा ज़रूर करूंगा।
Tuesday, April 29, 2008
Thursday, April 10, 2008
जल - प्रदूषण
आज के पोस्ट में मैं चर्चा करना चाहूँगा जल-प्रदूषण की। पिछले पोस्ट में मैंने जल के बारे में मोटे तौर पर बताया था। पोस्ट के अंत में जल के कुछ गुणों की बात कही थी मैंने।
1. जल में आंखों से दीखने वाले कण और जीव-वनस्पति नही हों।
2. हानि पहुँचानेवाले सुक्ष्म जीव या कण न हों।
3. जल का pH संतुलित हो।
4. जल में पर्याप्त मात्र में oxygen घुला हो।
जब प्रदूषण की बात करें तो उपरोक्त चारों गुण यदि ना हों तो कहेंगे कि जल उपयोग के लायक नही है। प्रथम बिन्दु की बात करें तो पाएंगे कि आंखों से दीखने वाले कण और वनस्पति कुछ तो सीधे तौर पर हमारे द्वारा फेंके गए ठोस कचरे का परिणाम है और कुछ प्राकृतिक कारणों से हैं। प्राकृतिक कारणों में भूमि-क्षरण, प्राकृतिक परिवेश के पौधे इत्यादी हैं। जहाँ पर भोजन होगा, खाने वाले तो वहाँ पहुंचेंगे ही। फिर चाहे वो सूक्ष्म जीव ही क्यों न हों। रही बात जल के pH और oxygen की तो यह सब इंसानी कारनामे हैं। हमारे कल-कारखानों से निकलता औद्योगिक कचरा नदियों और भूमिगत जल-स्त्रोतों को खतरनाक रसायनों के मिलावट से प्रदूषित कर रहा है।
भूमिगत जल-स्त्रोतों का अत्यधिक दोहन होने से उसमे अनेक तत्वों की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुँच गयी है। इसको हम ppm में मापते हैं जिसका अर्थ होता है पार्ट प्रति मिलियन। ओक्सेजन को BOD and COD में मापते हैं।
BOD यानि Biological oxygen demand और COD यानि chemical oxygen demand. pH जल की acidity या alkaline nature को बताता है। साधारण जल का pH 7 होता है। इससे ज्यादा हुआ तो alkaline और कम हुआ तो acidic होता है।
जल में विभिन्न प्रकार के कण की उपस्थिति जल को Hard बनाती है। नाम के मुताबिक ही ऐसे जल से कोई काम कर पाना हार्ड होता है। जल से तमाम चीजों को बाहर कर उसे उपयोग के लायक बनाया जाता है। इसे Water treatment कहते हैं।
अगले पोस्ट में Water treatment की चर्चा करूंगा।
1. जल में आंखों से दीखने वाले कण और जीव-वनस्पति नही हों।
2. हानि पहुँचानेवाले सुक्ष्म जीव या कण न हों।
3. जल का pH संतुलित हो।
4. जल में पर्याप्त मात्र में oxygen घुला हो।
जब प्रदूषण की बात करें तो उपरोक्त चारों गुण यदि ना हों तो कहेंगे कि जल उपयोग के लायक नही है। प्रथम बिन्दु की बात करें तो पाएंगे कि आंखों से दीखने वाले कण और वनस्पति कुछ तो सीधे तौर पर हमारे द्वारा फेंके गए ठोस कचरे का परिणाम है और कुछ प्राकृतिक कारणों से हैं। प्राकृतिक कारणों में भूमि-क्षरण, प्राकृतिक परिवेश के पौधे इत्यादी हैं। जहाँ पर भोजन होगा, खाने वाले तो वहाँ पहुंचेंगे ही। फिर चाहे वो सूक्ष्म जीव ही क्यों न हों। रही बात जल के pH और oxygen की तो यह सब इंसानी कारनामे हैं। हमारे कल-कारखानों से निकलता औद्योगिक कचरा नदियों और भूमिगत जल-स्त्रोतों को खतरनाक रसायनों के मिलावट से प्रदूषित कर रहा है।
भूमिगत जल-स्त्रोतों का अत्यधिक दोहन होने से उसमे अनेक तत्वों की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुँच गयी है। इसको हम ppm में मापते हैं जिसका अर्थ होता है पार्ट प्रति मिलियन। ओक्सेजन को BOD and COD में मापते हैं।
BOD यानि Biological oxygen demand और COD यानि chemical oxygen demand. pH जल की acidity या alkaline nature को बताता है। साधारण जल का pH 7 होता है। इससे ज्यादा हुआ तो alkaline और कम हुआ तो acidic होता है।
जल में विभिन्न प्रकार के कण की उपस्थिति जल को Hard बनाती है। नाम के मुताबिक ही ऐसे जल से कोई काम कर पाना हार्ड होता है। जल से तमाम चीजों को बाहर कर उसे उपयोग के लायक बनाया जाता है। इसे Water treatment कहते हैं।
अगले पोस्ट में Water treatment की चर्चा करूंगा।
Friday, April 4, 2008
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून
बिल्ली को सामने देख जैसे कौवे काँव - काँव करने लगते हैं, नेताओं को गांधी जी जैसे सिर्फ़ नोटों पर सुहाते हैं और जैसे सरकारी शिक्षक सिर्फ़ इंस्पेक्शन वाले दिन ही पढाते हैं, वैसे ही गर्मी को देख, मुझे भी पानी की कहानी याद आ गयी। अब आप चाहें तो मुझे मौकापरस्त कह सकते हैं। आख़िर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमें हमारे संविधान ने दी है।
प्रकृति ने हमें अनेक नेमतों से नवाजा है। स्वच्छ वायु और शीतल जल उनमे से हैं। आज के पोस्ट में मैं सिर्फ़ जल की बात करूंगा।
यूं तो पृथ्वी का दो-तिहाई हिस्सा जल से ढंका है, किंतु इंसानों के प्रयोग लायक जल बहुत ही कम है। जल का मुख्य भण्डार हमारे सागर-महासागर हैं। फिर है दोनों ध्रुवों और पर्वतों पर बर्फ के रूप में जमा हुआ पानी। तीसरा है हमारे भूमिगत जल स्त्रोत। जमीन की सतह पर बह रही नदियों और तालाबों में जमा पानी भी है किंतु इन्हे भी बर्फीले ग्लासिएरों या भूमिगत स्त्रोतों से ही पानी मिलता है। हमारे वातावरण में मौजूद जल-वाष्प भी जल का एक बड़ा भण्डार हैं।
पृथ्वी पर मौजूद जल का तकरीबन ९७% हिस्सा सागरों और महासागरों के खारे पानी के रूप में है। बाकी का करीब ३% हिस्सा ही हमारे काम का है। उसमें से भी, ६७ - ६८ % हिस्सा बर्फ के रूप में जमा हुआ है। करीब ३०% हिस्सा भूमिगत जल का है। नदियों, झीलों और तालाबों में १% से भी कम ताजा पानी है।
हम इंसान इतने कम उपलब्ध जल के स्त्रोतों का इस तरह से दोहन कर रहे हैं की जल्द ही हमारे सामने जल संकट अपने विकरालतम रूप में मौजूद होगा। हमारे उपयोग का लगभग सारा जल नदियों, झीलों या भूमिगत स्त्रोतों से आता है। हम न सिर्फ़ जल का उपयोग करते हैं, बल्कि उसे प्रदूषित भी करते हैं। इस तरह हम दोधारी तलवार से अपने जीवनदाता पर वार कर रहे हैं।
प्रकृति ने हमें अनेक नेमतों से नवाजा है। स्वच्छ वायु और शीतल जल उनमे से हैं। आज के पोस्ट में मैं सिर्फ़ जल की बात करूंगा।
यूं तो पृथ्वी का दो-तिहाई हिस्सा जल से ढंका है, किंतु इंसानों के प्रयोग लायक जल बहुत ही कम है। जल का मुख्य भण्डार हमारे सागर-महासागर हैं। फिर है दोनों ध्रुवों और पर्वतों पर बर्फ के रूप में जमा हुआ पानी। तीसरा है हमारे भूमिगत जल स्त्रोत। जमीन की सतह पर बह रही नदियों और तालाबों में जमा पानी भी है किंतु इन्हे भी बर्फीले ग्लासिएरों या भूमिगत स्त्रोतों से ही पानी मिलता है। हमारे वातावरण में मौजूद जल-वाष्प भी जल का एक बड़ा भण्डार हैं।
पृथ्वी पर मौजूद जल का तकरीबन ९७% हिस्सा सागरों और महासागरों के खारे पानी के रूप में है। बाकी का करीब ३% हिस्सा ही हमारे काम का है। उसमें से भी, ६७ - ६८ % हिस्सा बर्फ के रूप में जमा हुआ है। करीब ३०% हिस्सा भूमिगत जल का है। नदियों, झीलों और तालाबों में १% से भी कम ताजा पानी है।
हम इंसान इतने कम उपलब्ध जल के स्त्रोतों का इस तरह से दोहन कर रहे हैं की जल्द ही हमारे सामने जल संकट अपने विकरालतम रूप में मौजूद होगा। हमारे उपयोग का लगभग सारा जल नदियों, झीलों या भूमिगत स्त्रोतों से आता है। हम न सिर्फ़ जल का उपयोग करते हैं, बल्कि उसे प्रदूषित भी करते हैं। इस तरह हम दोधारी तलवार से अपने जीवनदाता पर वार कर रहे हैं।
जल की उपयोगिता की चर्चा करना व्यर्थ है। यदि कहूं कि "जल ही जीवन है" तो अतिशयोक्ति नही होगी। किंतु कैसा जल जीवन है? हमारे कुछ उपयोग जीवन को सहारा देने वाले हैं जैसे की जल का भोजन और पीने के लिए उपयोग। फिर कुछ अन्य सहयोगी कार्य भी हैं जैसे नहाना, कपडे-बर्तन धोना और उद्योग धंधों में काम आने वाला पानी।
पानी पृथ्वी पर पायी जाने वाली एकमात्र ऐसी चीज़ है जो वस्तु के तीनो अवस्थाओं ठोस (बर्फ), तरल (जल) और गैस (जल-वाष्प) रूपों में एक साथ प्राकृतिक तौर पर मौजूद है। जो जल हमें मिलता है, उसमे कई तरह के कण और सुक्ष्म जीव होते हैं। उसमें कुछ हमें फायदा पहुंचाते हैं तो कुछ हमारा नुकसान भी करते हैं। आईये देखें कि जल में कौन-कौन से गुण होने चाहिए।
1. जल में आंखों से दीखने वाले कण और जीव-वनस्पति नही हों।
2. हानि पहुँचानेवाले सुक्ष्म जीव या कण न हों।
3. जल का pH संतुलित हो।
4. जल में पर्याप्त मात्र में oxygen घुला हो।
जब मैंने शुरू किया था, तब सोचा नही था कि इतना लिख देने के बाद भी इतना ज्यादा बचा रह जाएगा। अपने आने वाले पोस्ट में जल-शुध्धिकरण, प्रदूषण और जल-संग्रहण की चर्चा करूंगा।
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