जीने की कोशिश करता आदमी,
चला जा रहा, बिना रुके, बिना थके
नही, उसकी कोई कहानी नही है,
परछाई है वो, बिना किसी शरीर के
परछाईयों की कोई कहानी
न थी, न कभी होगी। याद रखना।
कहानी तो स्थूल शरीर की होती है
रौशनी के मोहताज परछाई की नही
पर परछाईयाँ समेटे रहती हैं कहानियाँ
कई किस्से, हँसते-रोते, जागते-सोते
जीने की कोशिश करता आदमी,
बुनता जाता है, परछाईयों के जाल
उन जालों में फँसा समय, बन जाता
कहानी, कोशिश चलती रहती, जीने की।
👍👏👏👏
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