रोटी की आस लिए
सपने कुछ पास लिए
घर गाँव जवार छोड़
आधा इधर छूट गया
आधा उधर छूट गया
माटी से मुँह को मोड़
रात दिन मजूरी की
रोटी की चिरौरी की
अपना हाड़ हाड़ तोड़
सपने तो सपने हैं
सपने कहाँ अपने हैं
सच से है कहाँ जोड़?
सपने कुछ पास लिए
घर गाँव जवार छोड़
आधा इधर छूट गया
आधा उधर छूट गया
माटी से मुँह को मोड़
रात दिन मजूरी की
रोटी की चिरौरी की
अपना हाड़ हाड़ तोड़
सपने तो सपने हैं
सपने कहाँ अपने हैं
सच से है कहाँ जोड़?
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