जिस देश में क्रिकेट धर्म हो और जहाँ की जनता "ॐ क्रिकेटाय: नमः" से अपना दिन शुरू करती हो, मैं उस देश में परदेशी की तरह हूँ। यूँ तो मुझे क्रिकेट का कोई ख़ास क्रेज नहीं है लेकिन हाल के दिनों में जो कुछ हुआ, उसने मुझे क्रेजी ज़रूर कर दिया है। मैंने सोचा कि क्यों न एक बार भईया से मिल कर अपनी बात कहूँ। सो मैं उनके घर पहुँच गया।
"भईया प्रणाम"
"अरे! तुम! आओ-आओ" भईया बोले।
मैंने बैठते ही सवाल दागा, "भईया, ये क्रिकेट में क्या हो रहा है?"
"मगर भईया, ये कैसा खेल? ये तो खेल भावना के विपरीत है।" मैंने कहा।
"धुर बुरबक। एतना दिन के बादो नहीं समझा? भावना हमरे-तुमरे लिए है। उनके लिए तो सिर्फ खेल है।" भईया बोले।
"मगर भईया, खेल में फिक्सिंग! कभी मैच तो कभी स्पॉट... और तो और, BCCI की मीटिंग भी फिक्स... ये क्या हो रहा है?"
"तुम्हरे जैसा बुरबक लोग बुरबके रह जायेगा। इ लोग त पहलही बता दिया था कि इ सब होने वाला है।" भईया बोले।
"वो कैसे भईया?" मैंने पूछा।
"अरे लगता है कि तुमको TV देखने का टाइम नहीं मिलता है। देखा नहीं कि IPL से ठीक पहले फरहा खान क्या बोली - सिर्फ देखने का नहीं।" भईया पूरे मूड में आ चुके थे।
"इसका क्या मतलब हुआ भईया?" मैंने अनजान बनते हुए पुछा।
"इसका मतलब यही 'भोले-भंडारी' कि समझदार के लिए सिर्फ इशारा काफी है। जो समझदार लोग इशारा को समझे, उ करोड़ों में खेलने लगे। बाकी जो तुम्हरे जैसन थे, उ खेल के खेल में अपना समय से खेलते रहे। लेकिन एक बात इ भी है कि अपनी पुलिस भी कौनो कम समझदार त है नहीं, बस सबका "जम्पक जम्पक" कर दिया।"
"लेकिन भईया, क्रिकेट का क्या होगा?"
"अरे जंपिंग जपाक जम्पक जम्पक होगा, और क्या!" कह कर भईया तो चाय में खो गए और मैं उनके इशारे को समझने की कोशिश करता रहा।
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