माचिस की तीली
आग समेटे
शहर - ग्राम
ढूंढता मुकाम
छोटे-छोटे
बेकार पड़े टुकड़े
लकड़ी के
गीले, टेढ़े-मेढ़े
बाँट दिया उनमे
आग अपना
अब सारे
खुद हैं रौशन
जग को दे रहे
उसकी रौशनी
उन तमाम गुरुजनों को, जिन्होंने मुझे वो बनाया, जो मैं आज हूँ, मैं नमन करता हूँ.
शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं