Wednesday, July 15, 2020

प्रवासी

रोटी की आस लिए
सपने कुछ पास लिए
घर गाँव जवार छोड़

आधा इधर छूट गया
आधा उधर छूट गया
माटी से मुँह को मोड़

रात दिन मजूरी की
रोटी की चिरौरी की
अपना हाड़ हाड़ तोड़

सपने तो सपने हैं
सपने कहाँ अपने हैं
सच से है कहाँ जोड़?