छाए हैं चहुँ ओर, घटा घनघोर
कड़ड़ कड़ बिजुरी चमके
आसमान के श्याम पटल पर
इठलाती सी दामिनी दमके
झूम रहे दिक्, जीव-जंतु सब
पवन झकोरे उन्हें झुलाते
उमड़ घुमड़ कर काले बादल
जीवन ही का अक्स बनाते
गिरती बूँदें, मदमाती सी
गिरे उधर, हों जिधर हवायें
दामन में उनको भर लेने
धरा खड़ी बाहें फैलाये
धरती से उड़-उड़ कर पानी
पहले हैं बादल बन जाते
उमड़-घुमड़ कर, गरज-बरस कर
धरती की हैं प्यास बुझाते
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