अंग अंग
हो रंग रंग
भंग संग
बाजे मृदंग
कान्हा चले
ग्वालों के संग
हाथों में रंग
मन में उमंग
सखियाँ सहित
राधा खङी
कान्हा को रंगने
को अङी
दिक् दिक् रहा था
रस बरस
उल्लास उत्सव
का सरस
रस रंग राग
आया है फाग
हर मन मे आज
बजने दो साज
हर द्वेष भूल
खिलने दे फूल
बस मिल गले
आगे चलें
जीवन तो
हँसी ठिठोली है
बुरा न मानो
होली है
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