सुबह-सुबह मोबाइल के बजने
से जब हमारी नींद खुली तो देखा कि अनिलजी फोन पर थे. उन्होंने कहा कि सवा-सात बज
रहे हैं और मैं गाड़ी के साथ आपका इंतज़ार कर रहा हूँ. कल के व्यस्त कार्यक्रम ने
हमें पस्त कर दिया था किन्तु अनिलजी के एक काल ने जैसे हमारे पैरों में पहिये लगा
दिए. हमने उन्हें थोड़ा इंतज़ार करने को कहा किन्तु ये इंतज़ार भी घंटे भर का हो गया.
सवा-आठ बजे हम गाड़ी में थे और गाड़ी हवा से बातें कर रही थी. अनिलजी को जब यह मालूम
हुआ कि हम लोगों ने नाश्ता भी नहीं किया है तो उन्होंने नवतारा रेस्त्राँ के सामने
अपने गाड़ी लगा दी. संगोल्डा क्षेत्र में स्थित ये रेस्त्राँ अभी पूरी तरह से खुला
नहीं था किन्तु हमें गरमा-गर्म नाश्ता और कॉफ़ी, दोनों ही मिल गए. गोवा विधानसभा के
सामने से होते हुए जब हम मांडवी नदी ( #RiverMandvi )पर बने पुल को पार कर रहे थे, तब सवा-नौ बज
रहे थे. यहाँ से गाड़ी काफी दूर तक नदी के किनारे-किनारे गयी. वहां दलदली ज़मीन पर
मछली पकड़ने का जाल लगा देख हमें उत्सुकता हुई. पता चला कि ज्वार-भाटे के साथ यहाँ
मछलियाँ पकड़ी जाती हैं.
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Fishing Nets in shallow water |
इस रास्ते पर कुछ दूर तक तो ये एहसास ही नहीं होता कि आप
भारत में हैं. ऐसा लगता है मानो हम पुर्तगाल के किसी गाँव से गुजर रहे हैं. एक बार
गाड़ी शहर की सीमाओं से बाहर हुई तो पहाड़ो पर धुंध देखकर ये बता पाना मुश्किल था कि
अभी सुबह के तकरीबन दस बज रहे हैं.
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The foggy morning |
नज़ारों का आनंद लेते हुए जब हम अपने गंतव्य तक
पहुंचे तब पौने-ग्यारह बज रहे थे.
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Just a step from Kullem stand |
कुलेम रेलवे स्टेशन के पास दूधसागर ( #DudhSagar ) जीप स्टैंड
है. यहाँ एक काउंटर है जहाँ हमने अपना पंजीकरण कराया. पंजीकरण शुल्क 350 रूपए
प्रति व्यक्ति था जो दरअसल गाड़ी का टिकट था. फिर 30 रूपए प्रति व्यक्ति देने पर हमें
लाइफ-जैकेट मिला, इस हिदायत के साथ कि अगर इसे उतारा तो तुम्हारा जाना रद्द! वहां
एक सज्जन थे जो सारी गतिविधियों की निगरानी कर रहे थे. गाड़ी मिलने में देर होने
लगी तो मैंने शिष्टाचारवश उनसे पूछा – सर, आपका नाम क्या है? वे भड़क गए – सभी लोग
यहाँ मुझे अंकल बुलाता है. यहाँ तक कि मेरा बच्चालोग भी मेरे को अंकल बुलाता है.
तुम भी अंकल ही बोलो और अपना काम बताओ. मैं स्तब्ध था. फिर मैंने पूछा कि काफी देर
हो गयी और हमें गाड़ी नहीं मिली. तब उन्होंने बताया कि दूधसागर जाने के लिए तकरीबन
50 गाड़ियाँ चलती हैं किन्तु अभी सिर्फ 30 गाड़ियों को फिटनेस प्रमाण-पत्र मिला है.
वे बोले – तुम लोग लक्की है मैन कि ट्रिप चालू हो गया. अभी मंडे को ही ट्रिप शुरू
हुआ है नहीं तो बारिश में ये बंद हो जाता है. हमने राहत की सांस ली कि आना सफल रहा
वरना.
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Uncle in blue |
खैर, घंटे भर बाद हम गाड़ी के अन्दर थे. यहाँ से प्रपात तक का सफ़र रोमांचक भी
था, डरावना भी. कभी जंगल अपनी विशालता से मुग्ध करता, कभी अपनी जटिलताओं से साँसे
रोक देता.
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Roaring through the mighty flow |
सवा घंटे में 10 किलोमीटर का सफ़र तय कर हम जल-प्रपात के पास पहुंचे.
फिसलन भरे उबड़-खाबड़ रास्तों को पार करके जब हम प्रपात तक पहुंचे, लगा कि इतनी
मेहनत से यहाँ तक आना सफल रहा.
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Dudhsagar Falls |
जंगल के इस साहसिक अभियान ने हमारे अन्दर एक नया
जोश भर दिया. हमें करीब एक घंटे तक यहाँ रहने की इजाज़त थी, सो दो बजते ही हमलोग गाड़ी
की ओर वापस चल दिए.
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Devil's Canyon |
लौटते वक़्त ड्राईवर ने सिर्फ एक घंटा ही लगाया और हम
जल्दी-जल्दी लाइफ-जैकेट लौटाकर वापसी के सफ़र पर निकल पड़े.
आधे-घंटे के सफ़र के बाद हम
सहकारी स्पाइस फार्म के सामने थे. घड़ी देखा तो पौने-चार बज रहे थे. वैसे तो हमने
यहीं अपने दोपहर के भोजन का सोच रखा था किन्तु यहाँ घूमने में कम-से-कम तीन घंटे
लगते. सो, हम आगे बढ़ गए.
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Farmagudi Fort |
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ShantaDurga Temple |
रास्ते में भोजन किया और शांतदुर्गा मंदिर पहुंचे. ये
मंदिर काव्लेम में स्थित है और यहाँ देवी दुर्गा के शांत-स्वरुप की पूजा होती है. मंदिर
की भव्यता और अनूठा स्थापत्य देखने योग्य है. यहाँ हमने बीस मिनट बिताये.
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Wax meuseum |
दो दिनों तक लगातार घूमने
के बाद हमने तय किया कि अब बारी समुद्र का मज़ा लेने की है. अनिलजी ने बताया कि
इसके लिए कालान्गुट बीच ( #Calangute ) ठीक रहेगा. हमने उनकी बात पर अमल करते हुए नाश्ते के बाद
का प्रोग्राम बनाया.
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People enjoying on Calangute Beach |
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Riding on the waves |
समुद्र-तट पर हमें अनेक दलाल मिले किन्तु हमने काउंटर से टिकट
कटाया और विभिन्न जल-क्रीड़ाओं का आनंद लिया. प्रत्येक गतिविधि के लिए अलग शुल्क
निर्धारित है जोकि 200 से 500 रूपए प्रति-व्यक्ति प्रति-फेरा तक है. दोपहर के दो
बजते-बजते हम थक भी गए थे और बुरी तरह से भीग भी गए थे. सो हमने लौटने का फैसला
किया. हमें पता चला कि यहाँ के सुलभ शौचालय में कपड़े बदलने की सुविधा उपलब्ध है. हमारे
पास कपड़े तो थे ही, तो हमने सोचा कि गीला रहने से अच्छा है कपड़े बदल लिए जायें. जब
हम अंदर गए तो चारों ओर गंदगी का अंबार था. ऐसा लगता था कि सदियों से यहाँ सफाई
नहीं हुई हो. जैसे-तैसे हमने नाक बंद कर कपड़े बदले. ऐसी घटिया व्यवस्था के भी हमें
20 रूपए प्रति-व्यक्ति के हिसाब से देने पड़े.
वापस आकर हमने नहाया, खाया
और आराम करने का सोच ही रहे थे कि अनिलजी ने फोन करके याद दिलाया कि हमने छः बजे
के रिवर-क्रूज का टिकट बुक करा रखा है. अगर हम समय से नहीं निकले तो हमें बाद वाले
जहाज में जगह मिलेगी. फिर क्या था, हम सब पुनः तैयार होने में लग गए. नियत समय पर
हम पणजी स्थित सैंटा मोनिका रिवर क्रूज ( #GoaRiverCruise ) प्रस्थान स्थल पर पंक्तिबद्ध होकर अपनी
बारी का इंतज़ार कर रहे थे.
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Ferry as seen from the bridge |
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Children enjoying on Santa Monica river cruise |
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A view from the cruise |
हमें जल्द ही बैठने की अच्छी जगह मिल गयी. जलयान भी
नियत समय पर अपनी यात्रा पर निकल गया. सामने एक स्टेज बना था और पीछे खाने-पीने का
स्टाल लगा था. इन दोनों के बीच था अंतहीन मस्ती-मजा का कार्यक्रम. स्थानीय
कलाकारों ने गोवा की संस्कृति और दर्शन के दर्शन तो कराये ही, दर्शकों को भी साथ
में नचाया. लहरों से खेलता जलयान धीरे-धीरे समुद्र की ओर बढ़ने लगा. डूबते सूरज की
लालिमा जब बलखाती लहरों से टकरा कर चमकती तो ऐसा लगता मानो पानी पर स्वर्ण-कण
बिखरे पड़े हों. बाहर अद्भुत नज़ारे और अंदर जोशीला कार्यक्रम, समझ नहीं आ रहा था कि
बाहर देखें या अंदर. डेढ़ घंटे का ये सफ़र कब शुरू हुआ और कब ख़त्म, इसका पता ही नहीं
चला. जब हम वापस आये तो अपने साथ मुस्कुराहटें लेकर लौटे. सुबह की थकान गायब हो
चुकी थी. रही-सही कसर राजू के शानदार खाने ने पूरी कर दी. अंत भला तो सब भला.
आज गोवा में हमारा चौथा और
अंतिम दिन है. तीन दिनों के अतिव्यस्त और थका देने वाले कार्यक्रम के बाद आज हमने
थोड़ा सुस्ताने का मन बनाया. आखिर हमें वापसी की लम्बी यात्रा भी तो करनी थी. तो हमने
सुबह में स्थानीय जगहों को पैदल ही देखने का मन बनाया.
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Chauranginath Gram Devsthan |
शुरुआत हुई श्री चौरंगीनाथ
ग्राम देवस्थान से. यहाँ पूजा-अर्चना कर हम पैदल ही अगल-बगल की खोजबीन करने निकल
पड़े. यहाँ आस-पास ही एक वाटर-पार्क और एक गो-कार्टिंग ट्रैक भी है. हरी-भरी
पहाड़ियों से घिरा ये इलाका अत्यंत शांत और मनोरम है. आस-पास के क्षेत्रों का
परिभ्रमण कर हम खाने के लिए लौट आये. हमें शाम की गाड़ी पकड़नी थी, तो हमने अपना
सामान समेटा, राजू और अनिलजी को सधन्यवाद उनके प्रयासों को सम्मानित करने का
प्रयास किया और अनेक यादें समेटे गोवा से रुखसत हो लिए.
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