Thursday, January 6, 2011

हैप्पी न्यू इयर

नए साल की पहली सुबह मैं बाज़ार की ओर निकला तो सामने से मंद-मंद मुस्काते, झूमती चाल से आते मटकू भईया दिख गए!
हाथ जोड़ कर हमने कहा - "भईया प्रणाम. हैप्पी न्यू इयर!"
अचानक भईया ने हमें गले से लगाया और बोले, "तुम्हे भी नया साल मुबारक. वैसे इस नए साल में कुछ भी नया नही होगा."
मैंने व्यंग के तीर छोड़े, "आप इतने निराशावादी क्यों बन जाते हैं?"
"तुम्ही बताओ -

जब होगा नया साल
नेता नहीं करेंगे घोटाले?
पुलिसवाला नही खायेगा माल?
बाबू नही रहेंगे बैठे-ठाले?

हत्याएं नही करेंगे माओवादी?
बराबरी का समाज होगा?
बेलगाम नही होंगे अपराधी?
क्या कानून का राज होगा?

ठण्ड से कांपते हाथों को
अलाव की गर्मी मिलेगी?
भूख से ठिठुरी अंतरियों को
भोजन की नरमी मिलेगी?

यूँ तो चचा "ग़ालिब" कह गए
दिल बहलाने को ये ख़याल अच्छा है.
होगी नयी सुबह, कई साल नए
गर दिल में अरमान सच्चा है."

मैं मुस्कुरा दिया तो भईया भी मुस्कुराने लगे. बोले,"कई राष्ट्रवादियों को लगता है कि हमें अंग्रेजी कैलेंडर छोड़ कर हिंदी कैलेंडर अपनाना चाहिए."
"आपको क्या लगता है?" मैंने सवाल दागा.
"मुझे ये लगता है कि ईसाई कैलेंडर अगर ईसा-मसीह के जन्म से शुरू होता है तो क्रिसमस १ जनवरी को क्यों नही मनाते हैं, २५ दिसंबर को क्यों मनाते हैं?"
मुझे हैरान-परेशान कर भईया फिर चले गए थे....

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