रुकी उड़ानें कह रही हैं - जाग रे मानव, जाग!
अव्यवस्था की जंजीरों में, आज लगा दे आग।
फाइलों में है सोई नीतियाँ, और शिथिल है शासन,
चीर हरण कर इठलाता है, आज कोई दुःशासन
जनता की पीड़ा पर, इस मौन का क्या समाधान?
धधक उठा है जन का मन, जो ठेस लगी सम्मान।
जब सत्ता ने जन-पीड़ा को तुच्छ समझकर टाल दिया,
तब जनता ने सत्ताओं को, इतिहास मे डाल दिया।
ओ प्रबंधकों! उत्तर दो, किसका धर्म है छूटा?
क्यों यात्रा का थमा प्रवाह, विश्वास किसने है लूटा?
रनवे पर जो अटका है, वह यान नहीं इक राष्ट्र है,
अटकी है वह आशा, जिसके संरक्षक आप है!
जो कर्तव्य से विमुख हुए, वे अधोपतन को जाएँगे
कालचक्र का खेल अजब है, कहकर फिर पछताएँगे।