Monday, January 13, 2025

मकर संक्रांति

 सूर्य की चाल पर नजर रखने वालों को दक्षिणपंथी से उत्तरायण सूर्य इस कदर भाता है कि उत्सव का सा माहौल हो जाता है। ठंड से ठिठुर रहे लोगों को सूर्य की आहट मिलती है। गर्माहट की उम्मीद भर से ही, राहत मिलती है।

कोई संक्रांति मनाता है, कोई पोंगल। कोई लोहड़ी मनाता है तो कोई टुसू। अलग जगह, अलग नाम, पर मूल बात वही - सूर्य ने मकर राशि मे प्रवेश कर लिया।

सारा भारतवर्ष एक साथ गा उठता है - दुःख भरे दिन बीते रे भैया, अब सुख आयो रे।

कोई खिचड़ी बनाता है तो कोई दही-चूड़ा का भोग लगाता है। कोई पतंग उड़ाता है तो कोई बीहू गाता है। तिल और गुड़ तो हर कोई खाता है।

भारत के इस अखिल भारतीय पर्व पर कुछ पंक्तियाँ याद आती हैं - 

गुड़ का धेला, दही के मटके

हर थाली मे, कतरनी महके

सजधज कर ही, भोर बिहाने 

चली बहुरिया गंगा नहाने


बच्चों के हाथों मे लाई

देकर गई है जमुना ताई

मांझा लगाते, पतंग उड़ाते 

तिलकुट, गुड़, बताशे खाते


सूर्य देवता मकर को जाते

आज से अपनी तपिश बढ़ाते 

हम सब मिल उत्सव मनाए

उत्तरायण का जश्न मनाए

Wednesday, January 1, 2025

Happy New Year 2025

 साल के आखिरी दिन मैं मुस्कराया 

मन ही मन सोचा तो याद आया

जीने के लिए एक साल मिला था

क्या मैं इसे ढ़ंग से जी पाया?


खुशियाँ मिली तो गम भी मिले

ठोकर लगी पर उठ कर चले

रूक कर चले, चल कर रूके

मुस्कराए, कि एक और साल आया।

Tuesday, November 12, 2024

क्रांति क्या है?

 जब धाराएँ विपरीत हों

उछलती कूदती तेज गति

किनारे तोड़ देने को आतुर 

धारा के विपरीत तैरना ही नही

डट कर जगह पर स्थिर रहना 

भी, किसी क्रांति से कम नही।



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Monday, March 25, 2024

होली की हार्दिक शुभकामनाएँ

 

बसंत बहार, लाई रस की फुहार 

उड़े गुलाल, रंगों की चली धार।

स्वाद भरे, पकवानो की भरमार

मिलजुल कर, होली का हो त्योहार। 


होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।

Monday, January 1, 2024

Happy New Year 2024

उम्मीदों की थामे डोर, एक कदम सपनो की ओर

बीते वर्ष को पीछे छोड़, नए वर्ष में स्वागत है।




Sunday, June 11, 2023

कशमकश

बाहर है सन्नाटा गहरा, मन के अंदर शोर है,

ये विचार है, या है बुद्धि, या फिर कोई और है।


Tuesday, May 9, 2023

माफ कर दिया

माफ कर दिया है, मगर भूला नही हूँ


वो पत्थर जो फेंके थे मुझ पर कभी

मुझे काँच का, जो तुमने समझ कर

वो काँच की किरचें, संभाल रखी हैं

वो पत्थर भी सारे, वहीं पर पड़े हैं।


पाँव छिले थे, कुछ खून बहा था

वो सारे निशाँ भी, वहीं पर अड़े हैं।

मैं बढ तो गया हूँ, बस अपनी खातिर

पर तुम्हारे इरादे, वहीं पर खड़े हैं।


न समझो कि डरता हूँ तुमसे मगर

जीवन में जीवन से बढ़ के है क्या?

तो अब मैने ठाना है, चोट न खाऊँगा 

"कौन हो तुम?" बस यूँ निकल जाऊँगा 


तो अब तुम मुझे, चोटिल करोगे कैसे?

माफ तो कर दिया है, मगर भूलूँगा कैसे?

Thursday, December 15, 2022

चाय की चुस्की

 सर्दी की सुबह होती

कनकनाती, थरथराती।

एक प्याली चाय की

दोनों हाथों थाम ली।

भाप देखो चाय की

और चुस्की चाय की।

Monday, August 15, 2022

आजादी का अमृत महोत्सव

 अमृत का जब जश्न मनाओ

छक कर जब तुम अमृत पाओ

भूल न जाना इस मंथन में

संग संग गरल भी निकला था


अमृत का जब प्याला भरना

खुशी के जय जयकारे करना

कोटि कोटि उन नीलकंठ के

कोटि कोटि आभार करना


Tuesday, April 12, 2022

लेखन

 इक आग है सीने मे, जो कागज को जलाती है

बिन लिखे नही बुझती, लिखे से फैल जाती है।