Tuesday, May 9, 2023

माफ कर दिया

माफ कर दिया है, मगर भूला नही हूँ


वो पत्थर जो फेंके थे मुझ पर कभी

मुझे काँच का, जो तुमने समझ कर

वो काँच की किरचें, संभाल रखी हैं

वो पत्थर भी सारे, वहीं पर पड़े हैं।


पाँव छिले थे, कुछ खून बहा था

वो सारे निशाँ भी, वहीं पर अड़े हैं।

मैं बढ तो गया हूँ, बस अपनी खातिर

पर तुम्हारे इरादे, वहीं पर खड़े हैं।


न समझो कि डरता हूँ तुमसे मगर

जीवन में जीवन से बढ़ के है क्या?

तो अब मैने ठाना है, चोट न खाऊँगा 

"कौन हो तुम?" बस यूँ निकल जाऊँगा 


तो अब तुम मुझे, चोटिल करोगे कैसे?

माफ तो कर दिया है, मगर भूलूँगा कैसे?