अमलतास के पीले फूल
होड़ लेते नव अरूण से
कौन कितना हो सुनहरा
खुशी की आभा बिखेरे
रास्ते करते हैं रौशन
हो विटप या हो धरा
भार तज निज किसलयों का
पुष्प का श्रृंगार करके
ग्रीष्म भूपति बन खड़ा
छाँव में इक साँस ले लूँ
स्वर्ण लड़ियों को निहारूं
देखूँ जी भर के जरा
अमलतास के पीले फूल