जमशेदपुर चुनाव के ऐन पहले लापतागंज के नेताजी शर्मिंदा हो गए. शरद जोशी जी की व्यंग रचना की पराकाष्टा देखने को मिली जब नेता जी कहते हैं कि शर्मिंदा होने से फुर्सत मिले, तब तो काम करें! और जवाब में अपने मुकंदी भैया मिल-बाँट कर शर्मिंदा होने का प्रस्ताव रखते हैं: "देश की हालत पर हम शर्मिंदा हो लेते हैं, देश को इस हालत में लाने के लिए आप शर्मिंदा हो लें!" जीत सदा-सर्वदा की तरह नेताजी की होती है और जनता शर्मिंदा होती है कि ऐसा नेता क्यों चुना......
अंतमें
एक ही बात .......
शाबाश मुकंदी!