Wednesday, December 30, 2009
Wednesday, December 23, 2009
All that glitters...
The recent rise in gold prices has attracted investors a lot. We'll try to find out if investing in gold is actually profitable to the extent it is being described or not.
I, as an investor, buy gold ornaments weighing 100gms when gold prices were Rs. 10,000 each 10 gms. I paid a making charge of Rs. 250 each gram. Thus, I paid a total of Rs 1 lakh for gold and Rs. 25000 as making charges, making it 1.25 lakhs. On my bill, I paid a tax of say 10%, bringing the total to 1.375 lakhs.
Now the prices of gold are at 16000 per 10 gms and I decide to sell my gold ornaments. I go to the jeweler and he agrees to pay me in cash but after deducting 20% of weight (a standard practice). I agree and he gives me 80 X 1600 = 128000.
Five years back when gold was at 1000 Rs./gram, my ornaments cost me Rs.137500. After five years, I earn – 9500! OOPS! Did I make any mistake in calculation?
What if I get the price without any deduction? Lets find out. 100 X 1600 = 160000. My gain is 160000 – 137500 = 22500. That gives a 16.4 % gain in five years while the actual purchase price of gold went up by 60%!
That's not fair. I'll buy a gold bar from my bank which also gives me the purity certificate. Now I have a 100 gm bar I bought in Rs. 1 lakh. As the prices are now Rs 1600/gm, I approach my bank and the manager says that they are authorized for ONLY selling, not buy-back! No problem, I'll sell it to my jeweler (I'm smarter than this dumbo manager!). The jeweler straightway refuses my offer. My friend has bought a bar from the same jeweler. When he comes, the jeweler refuses to buy-back (you know that it is recession, people are not buying gold and I am short of operating capital).
With 100 gm of gold, I am holding a property that is worth Rs 160000. Do you agree to it?
Thursday, December 3, 2009
Remembering Deshratna Dr. Rajendra Babu
Wednesday, November 25, 2009
शाबाश मुकंदी!
जमशेदपुर चुनाव के ऐन पहले लापतागंज के नेताजी शर्मिंदा हो गए. शरद जोशी जी की व्यंग रचना की पराकाष्टा देखने को मिली जब नेता जी कहते हैं कि शर्मिंदा होने से फुर्सत मिले, तब तो काम करें! और जवाब में अपने मुकंदी भैया मिल-बाँट कर शर्मिंदा होने का प्रस्ताव रखते हैं: "देश की हालत पर हम शर्मिंदा हो लेते हैं, देश को इस हालत में लाने के लिए आप शर्मिंदा हो लें!" जीत सदा-सर्वदा की तरह नेताजी की होती है और जनता शर्मिंदा होती है कि ऐसा नेता क्यों चुना......
अंतमें
एक ही बात .......
शाबाश मुकंदी!
Saturday, October 3, 2009
सच का सामना
Wednesday, September 30, 2009
Thank You
Thursday, August 20, 2009
Superhero
Wednesday, August 12, 2009
Beauties on the roads
Thursday, August 6, 2009
Saturday, July 25, 2009
Who Am I?
Obedient, Knowledgeable and Proactive
Versatile yet strong, soft yet assertive
Lightening fast with a killer instinct
Is it me? Or my persona is distinct?
Looked upon as a man of substance
I just wonder, who I am?
Everyone has the right to think
I'm there for them, at eye's blink
Friend, son, husband and father
Numerous relations, to fulfill and gather
Unfeigned within or just a sham
I just wonder, who I am?
Friday, July 3, 2009
Think Again: Swine Flu
Thursday, July 2, 2009
तीन टांगो वाला आदमी
"अचानक इ राम-राम कइसे सूझा?"
"भइया, एक किताब पढ़ रहे थे जिसमे गाँव का एक आदमी मरते समय अपने बेटा को कहता है कि
१ हमेशा छावँ में काम पर जाओ और काम से आओ
२ मुसीबत में तीन टांग वाले से मदद लो।"
"अब एक कहानी सुनो" मटकू भइया बोले।
"एक गाँव में किसी लड़के कि शादी थी। बारात की तैयारी धूम धाम से चल रही थी। साथ ही लड़की-पक्ष कि एक विचित्र शर्त भी चर्चा में थी - बारात में सारे जवान होंगे! खैर, जब बारात चलने लगी तो एक बूढा आ कर साथ चलने कि जिद्द करने लगा। वैसे तो उसे कोई भी ले जाने को तैयार नही था पर उसकी जिद्द के आगे जवानों की एक न चली। बूढा बस की छत पर जा कर लेट गया। बारात पहुँची तो उसका स्वागत धूम-धाम से हुआ। जवानों ने आँख बचा कर बूढे-बाबा के लिए भी पकवानों कि व्यवस्था कर दी।
जब लड़का मंडप पर बैठ गया तो लडकी वालों ने एक और विचित्र शर्त सामने रखी। कहा गया कि गाँव में जो तालाब है, उसे लड़के-वाले दूध से भर दें, तभी शादी होगी। कुछ अति-उत्साही लड़के तालाब देखने गए पर उसे देख कर उनके होश उड़ गए। वह काफी बड़ा तालाब था! सरे लोग बस के पास विचार करने में लगे थे। उनको परेशान
देख बूढे-बाबा बोले - कोई परेशानी है क्या? पहले तो किसी ने उन पर गौर नही किया पर फिर सबने अपनी समस्या सुना दी। बाबा बोले - इतनी सी बात? अब तो लड़के उखर गए - इतना बड़ा तालाब है, खाली भी करना है और भरने के लिए दूध का भी इन्तेजाम करना है, आधी रात में हमारा दिमाग ख़राब हो रहा है और आप.... जैसे-तैसे सबों को शांत किया गया। फिर बाबा ने अपनी तरकीब बता दी। अब तो लड़के खुशी-खुशी मंडप पर पहुंचे - ऐसा है भाई कि हमलोगों ने तालाब देख लिया है, दूध का भी इन्तेजाम कर लिया है। अब लड़की-वालों की जिम्मेदारी है कि जल्दी से तालाब से पानी निकाल दें ताकि हम उसमे दूध भर सकें!
यही है तीन-टांगो वाले आदमी का कमाल। कुछ समझे?"
मैं हर बार की तरह सिर्फ़ अपना सर हिलाता रह गया!
Sunday, April 19, 2009
जूता पुराण
"क्या हुआ?"
"मतलब अब आप भी?"
"अरे मूरख, आगे भी कुछ बोलेगा?"
मटकू भैया को गुस्सा होते देख मुझे मज़ा आने लगा था लेकिन सोये शेर के साथ छेड़खानी तभी तक अच्छी जब तक वो सोया हुआ है.... वरना तो आप समझ ही गए होंगे.
"भैया, बुश से शुरु हुआ सिलसिला PM-in-waiting अडवाणी तक पहुँच गया है..... पर आप किस पर खफा हैं?"
भैया मेरा इशारा समझ कर हँसने लगे.
बोले "खफा तो पब्लिक है भाई.... अब पब्लिक को भाषण नही, रासन चाहिए. जो देगा, उ वोटवा पायेगा, अ नही ता जूता खायेगा."
हम दोनों साथ में हंस पड़े.
Tuesday, March 24, 2009
दिल है छोटा सा.. छोटी सी आशा..
दुआ-सलाम के बाद मैने उनको अपनी मुफ्त की सलाह दे डाली, "भैया, अच्छा हुआ आप मिल गयेI आज ही टाटा की 'नैनो' आई हैI आप भी एक ले लोI"
"बात तो तुम बहुत अच्छा कहे हो, पर तुम्हे तीन बातें बोलता हूँI"
"क्या भैया?"
"पहली ये कि एक लाख गाड़ी के लिए एक-एक लाख का बुकिंग अमाउंट जमा होने पर टाटा को कम-से-कम कितने करोड़ मिलेंगे, कभी सोचा है?"
"नही भैया..."
"दूसरी ये कि जब बड़े-बड़े खिलाड़ी लग्ज़री गाड़ी पर ध्यान लगाए बैठे थे, टाटा ने आम उपभोक्ता की उमीद से आगे जा कर उनके सपनो को पंख दिएI उनके छोटे से दिल की छोटी सी आशा की गाड़ी के रूप में 'नैनो' पेश किया...है कि नही?"
"और तीसरी बात भैया?"
"गाड़ी तो आ गयी, बिकेगी भी खूब... पर सड़क के गड्ढे और अतिक्रमण करते वाहनो, दुकानो का हमारे नेताओं के पास क्या समाधान है?"
"......" मैं चुप थाI